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संयम, सादगी और सदाचार की प्रतिष्ठा हो
बदलते जीवन-मूल्य
युग बदल रहा है । युग के बदलाव के साथ-साथ जीवन-मूल्यांकन के आधार बदल रहे हैं। कोई समय संयम, सादगी, सदाचार, स्वावलम्बन जैसे तत्व जीवन-मूल्यांकन के आधार थे । पर उनके स्थान पर आज प्रदर्शन, आडम्बर, साज-सज्जा, परावलम्बन जैसे तत्त्व जीवन-मूल्यांकन के आधार बन रहे हैं। यह स्थिति देखकर लगता है, आदमी गुमराह हो गया है । इसका परिणाम यह आया है कि व्यक्ति का जीवन-व्यवहार भारवाही और कृत्रिम बनता जा रहा है । इस भारवाहिता एवं कृत्रिमता का पोषण पाने के लिए उसे जाने कितनी प्रकार की अनैतिक/असद् प्रवृत्तियों को अपनाना पड़ता है । ये ही तो वे झंझावात हैं, जिन्होंने मानवता को डांवाडोल बना दिया है। इस स्थिति में वातावरण में चारों ओर निराशा, उदासीनता और विवशता फैलती जा रही है। लोग आशंकित हैं कि मनुष्य यों ही ह्रास की ओर बढ़ता चला गया तो जाने कब विनाश और वैषम्य का भयावह अंधेरा मानवता को लील जाए। समाधायक तत्व
पर मैं मानता हूं, निराशा, उदासीनता किसी भी समस्या के समाधायक तत्व नहीं हैं, बल्कि इनसे तो समस्या और अधिक गहराती है, उलझती है । मेरी दृष्टि में समस्या का एक मात्र समाधान यह है कि संयम, सादगी, सदाचार जैसे जीवन-मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की जाए। जीवन में हल्केपन को महत्त्व मिले । अणुव्रत आन्दोलन इस उद्देश्य की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । वह कहता है- जीवन को अधिक-सेअधिक संयत वृत्तियों से संजोते चलो, वैभव और सम्पदा की भूलभुलैया में गुमराह न बनकर अपने-आप को सत्य-निष्ठा से मांजते चलो, प्रामाणिकता एवं नैतिकता से अपने जीवन को भावित करते रहो। अणुव्रत आन्दोलन की भावना है-लालसाओं को असीमित होने से रोका जाए, आकांक्षाओं का विस्तार कम किया जाए। यही वह राजमार्ग है, जिस पर चलता हुआ
संयम, सादगी और सदाचार की प्रतिष्ठा हो
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