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________________ व्रत : भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व सुखमय जीवन का आधार 'व्रत' सुखमय जीवन की बुनियाद है । जिस प्रकार बुनियाद के बिना भवन खड़ा नहीं हो सकता, उसी प्रकार व्रत के बिना सुखमय जीवन का भवन खड़ा नहीं हो सकता । व्रत का अर्थ है - असद् से विरति, असंयम से संयम की ओर प्रस्थान । यद्यपि व्रत का मूल्य सभी समान रूप से प्रतिपादित करते हैं, तथापि भारतीय संस्कृति में इस तत्त्व को विशेष महत्त्व दिया गया है । यही कारण है कि यहां के वासियों में व्रत भंग का जितना भय रहता है, उतना किसी भी बड़े-से-बड़े कानून और सामाजिक प्रतिबंध का भी नहीं रहता । अत: व्रत- ग्रहण करते समय व्यक्ति बहुत सोचता- विचारता है, अपनी शक्ति, सामर्थ्य और श्रद्धा को तोलता है । मैं मानता हूं, व्रत की यह प्रतिष्ठा भारतीय संस्कृति का प्राण है। जब तक व्रत का मूल्य और प्रतिष्ठा जीवित है, तब तक इस संस्कृति को कोई मिटा नहीं सकता । अणुव्रत आन्दोलन 'व्रत' को जनव्यापी बनाने का ही कार्यक्रम है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि व्रतों के आधार पर कुछ ऐसे नियम तैयार किए गए हैं, जो व्यक्ति की संयम - चेतना को जागृत करते हैं, जन-जीवन में व्याप्त बुराइयों को निरस्त करते हैं । ९२ अणुव्रत आंदोलन सार्वजनीन है आप लोग देखते हैं, राष्ट्र के विकास के लिए विभिन्न स्तरों पर योजनाएं बनने का सिलसिला चल रहा हैं। पर ईमानदार, प्रामाणिक, नीतिनिष्ठ, सत्यनिष्ठ व्यक्तियों के अभाव में उनमें से अधिकांशतः कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रह जाती हैं, क्रियान्विति के स्तर तक नहीं पहुंचतीं । अणुव्रत आन्दोलन जन-जन में ईमानदारी, प्रामाणिकता, नीतिनिष्ठा, सत्यनिष्ठा जागृत करने का आन्दोलन है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका द्वार सभी के लिए समान रूप से खुला हैं। किसी भी जाति, वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय, प्रान्त, भाषा से सम्बन्धित व्यक्ति इसके साथ जुड़ सकता है । जो भी लोग स्वस्थ समाज और उन्नत राष्ट्र का स्वप्न देखते हैं, उनको मैं व्रत : भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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