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आह्वान करता हूं कि वे इस आन्दोलन की दार्शनिक पृष्ठभूमि को गहराई से समझे और समझकर भावना व आचरण के स्तर पर इसके साथ जुड़ें । इसे अपना नैतिक समर्थन देने के लिए कृतसंकल्प बनें। इसके सतत विकासशील प्रसार में अपने जीवन-क्षणों को सार्थक बनाएं । उनका यह प्रस्थान इस आन्दोलन को एक नई ताकत देगा। समाज और राष्ट्र की यह एक बहुत बड़ी सेवा होगी।
वाराणसी २३ दिसम्बर १९५८
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महके अब मानव-मन
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