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________________ स्थिर रखा गया। गहराई से देखा जाए तो यह संस्कृति आत्मा के संस्करण एवं परिमार्जन की संस्कृति है, आत्म से परमात्मा बनने की संस्कृति है। यही कारण है कि यह जातिवाद और वर्णवाद के संकीर्ण दायरों में नहीं बंधी। इसने स्पष्ट उद्घोषणा की कि जातिवाद अतात्विक है। वर्णवाद व्यक्ति के ऊंच-नीच की कसौटी नहीं है। व्यक्ति अपने कर्म से ही महान् और हीन होता है। वास्तव में इसके आदर्श मानवीय आदर्श हैं और वे शाश्वत सत्य के प्रतीक हैं। जैन दर्शन एवं संस्कृति ने जीवन के अन्तर्तम को छुआ है। हजारों वर्षों के पश्चात् भी जन-मानस में उसके प्रति एक आकर्षण का भाव बहुत स्पष्टतया देखा जा सकता है । बौद्धिक एवं वैज्ञानिक लोग इसके प्रति विशेष रूप से आकर्षित होते हैं। इससे इसके सिद्धान्तों, मान्यताओं, स्थापनाओं एवं आदर्शों की बुद्धिगम्यता, यथार्थपरकता, तर्कसंगतता और वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। पर इसके उपरांत भी इसका जितना फैलाव होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, पर मेरी दृष्टि में सबसे बड़े कारण स्वयं जैन लोग ही हैं। उन्होंने इस दिशा में कभी कोई सलक्ष्य प्रयास ही नहीं किया । मेरा चिन्तन है, अब भी यदि सुनियोजित ढंग से प्रचार-प्रसार हो तो यह दर्शन एवं संस्कृति बहुत विस्तार पा सकती है। स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी २० दिसम्बर १९५८ महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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