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________________ दर्शन और संस्कृति स्याद्वाद : सत्य के उद्घाटन की दिशा . जैन दर्शन भारतीय दर्शनों में एक प्रमुख दर्शन है । यह आत्मकर्तृत्ववादी दर्शन है। स्याद्वाद इस दर्शन की एक महान् देन है। यह मानव को सभी स्तर के विवादों और वितण्डावादों से मुक्तकर उसके लिए व्यापक चिन्तन की दिशा उद्घाटित करता है । स्याद्वाद से अनेकान्त दृष्टि का जन्म होता है । अनेकान्त दृष्टि सत्य से साक्षात्कार करने का सफलतम अभिक्रम है । आप इस बात को समझे कि सत्य को उपलब्ध होने के लिए व्यक्ति को विविध अपेक्षाओं से सोचना आवश्यक होता है। यह आनेकान्तिक दृष्टिकोण का ही परिणाम है कि जैन दार्शनिकों ने चार्वाक दर्शन तक को विभिन्न दर्शनों की शृंखला में स्वीकार किया है, जबकि अन्यान्य दार्शनिकों ने नास्तिक कहकर उसे दर्शनों की श्रेणी में कोई स्थान नहीं दिया। इस संदर्भ में जैन दार्शनिकों का चिंतन रहा कि वह भी एक दृष्टि है, एक विचार है । वर्तमान जीवन के बारे में सोचने की उसकी भी अपनी अपेक्षाएं और मान्यताएं हैं। जैन संस्कृति की विशिष्टता संस्कृति के पीछे अलग-अलग विशेषण लगाए जाने की परंपरा रही है। पर सिद्धांततः मैं उसका कोई विभाजन नहीं करता। मेरी दृष्टि में संस्कृति के पीछे 'सत्' और 'असत्' ये दो ही विशेषण पर्याप्त हैं । क्यों ? इसलिए कि संस्कार या तो अच्छे होंगे या होंगे बुरे । इनसे भिन्न तीसरा कोई विभाजन उनमें हो नहीं सकता और उसकी जरूरत भी नहीं है। फिर भी जिस परंपरा के द्रष्टाओं ने संस्कारों के सृजन और विकास की पद्धति सुझाई, उनके नाम का विशेषण बिना किसी आयास के वहां जुड़ ही जाता है। इस अपेक्षा से जैन तीर्थंकरों, आचार्यों द्वारा बताई गई जीवन-विकास की पद्धति जैन-संस्कृति के नाम से पहचानी जाती है । जैन संस्कृति समतामूलक संस्कृति है, पुरुषार्थप्रधान संस्कृति है । अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य आदि श्रेयस्मूलक आदर्शों को यहां परिस्थिति के कारण नीचा नहीं लाया गया, अपितु उन्हें अपने मूल स्वरूप में अक्षुण्ण एवं दर्शन और संस्कृति १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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