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क्यों ? मेरी दृष्टि में इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि उन्होंने अपने भजनों-गीतों में एक अमर संदेश भर दिया है, जो जन-जन को मानवता के राजपथ की ओर अग्रसर करता है। संस्कृत और प्राकृत के प्राचीन साहित्य में भी मानवता के राजमार्ग की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देनेवाला अमर संदेश प्रतिध्वनित होता है । पर दुर्भाग्य से उस साहित्य को पढ़ा जाना छूटता चला गया और उस कोटि के नए साहित्य का अपेक्षित सृजन नहीं हुआ। 'जागे तभी सवेरा' के अनुसार साहित्यकार अब भी इस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित कर इस भूल का परिष्कार करें। चुनौती को झेलें
साहित्यकार बन्धुओ! साहित्य की शक्ति से आप अपरिचित नहीं हैं। संसार में जितनी भी बड़ी-बड़ी क्रान्तियां या परिवर्तन घटित हुए हैं, उनमें साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज आणविक अस्त्रों के कारण जिस प्रकार का विध्वंसकारी वातावरण निर्मित हुआ है, उससे समूची मानव-जाति के भविष्य के आगे एक प्रश्नचिह्न लग गया है । इस स्थिति में आप साहित्यकारों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है । मैं चाहता हूं, आप इस चुनौती को झेलते हुए साहित्य की उस अद्भुत शक्ति का विस्फोट करें, जो इस विध्वंसकारी वातावरण का मुकाबला करती हुई मानव की प्रगति एवं उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सके ।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ९ दिसम्बर १९५८
साहित्य और साहित्यकार
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