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शिक्षा का प्रयोजन
विद्या क्यों ?
विद्या-प्राप्ति का वास्तविक प्रयोजन जीवन का सर्वतोमुखी विकास है । यदि इस उद्देश्य की प्राप्ति नहीं होती है तो विद्या-प्राप्ति की बहुत सार्थकता सिद्ध नहीं होती। आज अध्यापन के क्षेत्र में इस उद्देश्य की स्पष्टता नहीं है । उसी कारण आज विद्यार्जन का लक्ष्य मात्र अर्थाजन तक सिमट गया है । इसकी दुष्परिणाति हमारे सामने है । विद्यार्थी महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों से निकलने के पश्चात् आजीविका-प्राप्ति के लिए इधर-उधर मारा-मारा फिरता है। यदि जीवन के सर्वांगीण या सर्वतोमुखी विकास के लक्ष्य की स्पष्टता होती तो आज यह स्थिति पैदा होती ही क्यों। विद्वान् कौन ?
आज अधिकाशत: लोग इस भाषा में सोचते हैं कि विद्या प्राप्त करने वाला विद्वान होता है । ठीक है, विद्या से संपन्न व्यक्ति विद्वान् कहलाता है । पर मेरी दृष्टि में सच्चा विद्वान् वही है, जो ज्ञान प्राप्त कर उसके अनुसार अपने जीवन को बना लेता है । अपने चितन और व्यवहार को उससे भावित कर लेता है। अन्यथा उसका पुस्तकीय ज्ञान, उसका अध्ययन उसके लिए किसी भार से अधिक नहीं होता । विद्यार्थियों को इस बिन्दु पर गंभीरता से चिंतन कर अपने जीवन में एक नया मोड़ लेना चाहिए । विद्या-प्राप्ति के सही लक्ष्य का ज्ञान और लक्ष्योन्मुख गति ही उन्हें विद्यार्जन की सार्थकता प्रदान कर सकेगी।
हिन्दी विद्यापीठ, नैनी (प्रयाग) ९ दिसम्बर १९५८
शिक्षा का प्रयोजन
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