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अध्यात्म का अंकुश अपेक्षित
संसार में दो प्रकार के प्रवाह सदा से रहे हैं। एक है भौतिक प्रवाह तथा दूसरा है आध्यात्मिक प्रवाह । जिस प्रकार गंगा और यमुना की धाराओं का प्रयाग में समन्वय हो गया है, उसी प्रकार इन दोनों प्रवाहों में भी समन्वय स्थापित किया जा सकता है। पर समन्वय के अर्थ को आप स्पष्ट कर लें, क्योंकि उसके सन्दर्भ में बहुत सारे लोग भ्रांति पालते हैं । समन्वय का तात्पर्य मौलिक गुणों को छोड़ देना नहीं है । यदि ऐसा होता है तो वह मेरी दृष्टि में समन्वय नहीं, असमन्वय है । ऐसा समन्वय कभी काम्य नहीं, किसी काम का नहीं । मेरी दष्टि में वही समन्वय वास्तविक समन्वय है, जिसमें अपने मौलिक गुणों की सुरक्षा के साथ ऊपरी बातों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। भौतिकता एवं आध्यात्मिकता में ऐसे ही समन्वय की अपेक्षा करता हूं।
यह सही है कि भौतिक तत्वों के बिना जीवन चल नहीं सकता। लेकिन इसीके समानान्तर यह भी उतना ही सच है कि जब तक उन पर अध्यात्मवाद का अंकुश नहीं होगा तो वे विकास के स्थान पर विनाश का कार्य करेंगे। इसलिए भौतिकता पर अध्यात्म का अंकुश नितान्त अपेक्षित हैं। आज निरंकुश भौतिकता ने विश्व के सामने जैसी स्थिति पैदा की है, उससे सम्पूर्ण मानव जाति पर उसके अस्तित्व का खतरा मंडराने लगा है। इसलिए जगह-जगह से यह स्वर उभर रहा है कि भौतिकता पर अविलंब अंकुश लगना चाहिए । अणुव्रत आंदोलन भौतिकता पर अध्यात्म का अंकुश लगाने का कार्य करता है । इसलिए इस कार्यक्रम की उपादेयता स्वयसिद्ध है। अपेक्षा है, जन-जन इस कार्यक्रम के साथ जुड़े ।
प्रयाग ८ दिसम्बर १९५८
महके अब मानव-मन
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