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________________ सम्यक दृष्टिकोण निर्मित नहीं होगा, तब तक धन से धर्म खरीदने जैसी अनेक गलत प्रवृत्तियां उसके इर्द-गिर्द चलती रहेंगी। उन्हें रोका नहीं जा सकता। इसलिए यह अत्यन्त अपेक्षित है कि धर्म के प्रति लोगों की अवधारणा सम्यक संयम की प्रतिष्ठा हो मैं अनुभव कर रहा हूं कि आज का मानव अत्यंत विशृंखलित एवं अशांत है । इसका क्या कारण है ? इसका कारण यही है कि उसमें आत्मनियंत्रण की शक्ति चुकती जा रही है, वह लालसाओं का दास बनता जा रहा है । जब तक वह अपनी असीमित लालसाओं पर अंकुश लगाना नहीं सीखेगा, आत्म-नियंत्रण का पाठ नहीं पढ़ेगा, तब तक वह अशांति और दुःख से नहीं छूट सकता । आत्म-नियंत्रण का अर्थ है-संयम । संयम धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष है। दुर्भाग्य से, इस पक्ष को जितना मूल्य दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया गया। उसकी ही दुष्परिणति दुःखी और अशांत जनजीवन के रूप में आई है । अणुव्रत आन्दोलन जन-जीवन में संयम के मूल्य को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न है। उसका घोष ही है-'संयमः खलु जीवनम्' --संयम ही जीवन है । अपेक्षा है, यह आन्दोलन अधिक-से-अधिक जनव्यापी बने । इसके जनव्यापी बनने का अर्थ है--संयम की प्रतिष्ठा । और संयम की प्रतिष्ठा का अर्थ है--सुख और शांतिमय जीवन । प्रयाग ७ दिसम्बर १९५८ धर्म की सही समझ जागे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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