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धर्म व्यवहार का तत्व है
हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि धर्म केवल शास्त्रों का तत्व न रहे। शास्त्रों तक सीमित रहने वाला धर्म जीवन की पवित्रता एवं स्वस्थता का आधार नहीं बन सकता । जीवन की पवित्रता एवं स्वस्थता का आधार वही धर्म बन सकता है, जो व्यक्ति के दैनंदिन जीवन से जुड़े, जीवन के हर व्यवहार एवं आचरण से जुड़े । अणुव्रत इस अर्हता से सम्पन्न है, इसलिए वह जीवन की पवित्रता एवं स्वस्थता का आधार बनता है । मैं उदाहरण से अपनी बात को और स्पष्ट करूं । एक व्यक्ति यह संकल्प करता है कि वह किसी को कटु वचन नहीं कहेगा। इस संकल्प के साथ ही धर्म का तत्व उस व्यक्ति के व्यवहार के साथ जुड़ गया। इससे व्यक्ति को अपने वर्तमान जीवन को स्वस्थ बनाने में बहुत सहयोग मिलेगा। इसी क्रम से व्यक्ति यदि धर्म के एक-एक तत्व को अपने जीवन-व्यवहार एवं आचरण से संपृक्त करता जाए तो वह अपने जीवन को स्वस्थ और पवित्र बना सकता है, अनिर्वचनीय आनन्द की अनुभूति कर सकता है। आप भी अपने जीवन में अणुव्रत आन्दोलन की आचार-संहिता को स्वीकार करें। आप का जीवन स्वस्थ बनेगा। उसमें पवित्रता की महक फूट पड़ेगी।
प्रयाग ७ दिसम्बर १९५८
धर्म दैनंदिन जीवन से जुड़े
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