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जाति-बंधन, सम्प्रदाय-बंधन की बातों का खूब प्रचार-प्रसार होता था । लोग उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, रस लेते थे । पर अब संकीर्ण और अनुदार विचारों का युग बीत चुका है । धर्म को अब जाति, वर्ण, सम्प्रदाय आदि के सभी प्रकार के संकीर्ण घेरों से बाहर निकालना ही होगा । उसका व्यापक और सार्वभौम स्वरूप ही मानव के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है । अणुव्रत आंदोलन धर्म के व्यापक और सार्वभौम स्वरूप के प्रचार-प्रसार का ही कार्यक्रम है । इसमें किसी प्रकार की कोई संकीर्णता को तनिक भी स्थान नहीं है । जीवन की पवित्रता में विश्वास रखने वाला कोई भी व्यक्ति इसके साथ जुड़ सकता है। कानपुर के पांच मास के प्रवास में इस कार्यक्रम को अच्छी गति मिली है | चाहता हूं, हमारे यहां से प्रस्थित हो जाने के पश्चात् भी यह कार्यक्रम व्यवस्थित रूप में आगे बढ़ता रहे। आप सबसे यह आग्रह करता हूं कि आप अपना जीवन-व्यवहार अणुव्रत भावना के अनुरूप बनाकर इसके प्रचार-प्रसार में अपनी शक्ति का पूरा-पूरा नियोजन करने का सत्संकल्प करें । बस, यही मेरा सच्चा विदाई अभिनन्दन होगा ।
कानपुर
२६ नवम्बर १९५८
कल्याण का मार्ग
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