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कल्याण का मार्ग
विदाई और विहार
आज विदाह-समारोह है । मैं मानता हूं, यह विदाई तो मात्र एक रस्म है, वास्तव में हमारी विदाई तो बहुत पहले ही हो चुकी । जिस दिन हमने गृहवास छोड़कर साधु जीवन स्वीकार किया था, उसी दिन हम इस संसार से, अपने मित्रों, पारिवारिक जनों एवं सम्बन्धियों से विदा ले चुके थे । अतः हमारे लिए विदाई के स्थान पर 'विहार' शब्द का प्रयोग होता है । जैन और बौद्ध दोनों में यही परम्परा रही हैं । इसी परंपरा के कारण ही संभवतः वर्तमान विहार प्रदेश का नाम विहार पड़ा हो, क्योंकि भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध का जन्म तथा बहुलांश में विहरण एवं प्रवास विहार में ही हुआ । यह भी कैसा शुभ संयोग है कि हम यहां से प्रस्थान कर विहार प्रदेश का स्पर्श करने जा रहे हैं ।
सच्चा अभिनंदन
इस अवसर पर मैं एक-दो बातें विशेष रूप से कहना चाहता हूं । आज सारे विश्व में संघर्ष और भय की स्थिति है । सभी लोग इस स्थिति से चिन्तित हैं । मैं सोचता हूं, इस स्थिति से उबरने का उपाय यही है कि मानव समन्वय का मार्ग अपनाए । समन्वय बहुत ही मूल्यवान तत्व है । इससे बंधुता, समता और मैत्री की भावना का विकास और प्रसार होता है । आप सबका ऐसा प्रयास होना चाहिए, जिससे समन्वय की भावना को अधिक-से-अधिक सींचन मिले ।
आचार का उन्माद और विचारों का दुराग्रह दोनों व्यक्ति को पतन के गर्त में ले जाने वाले तत्व हैं । आज ये दोनों तत्व समाज में प्रभावी बनते जा रहे हैं । यह बहुत ही गंभीर बात है । जीवन को विकास की ओर ले जाने की आकांक्षा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इनसे बचने का सलक्ष्य प्रयत्न करना चाहिए। अन्यथा विकास करने की आकांक्षा पूरी नहीं होगी | संकीर्णता और हीनभावना ये दो अन्य विकास- बाधक तत्व हैं । बन्धुओ ! कोई समय था, जब संकीर्णता की बातों को महत्व दिया जाता था ।
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महके अब मानव-मन
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