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________________ करती थीं। भगवान महावीर ने कहा, मुक्ति को जितना अधिकार पुरुष को है, उतना ही नारी को है । पुरुष को किंचित् भी अधिक नहीं और नारी को किंचित् भी कम नहीं। यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो हमें यह मानना होगा कि जनसंघ के अतिरिक्त अन्यान्य किसी भी धर्मसंघ में परिव्राजिकाओं की ऐसी सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित परम्परा उपलब्ध नहीं है। उन्होंने साध्वियों के संयम-निर्वाह के लिए कुछेक विशेष नियम बनाए, जिससे उन्हें महाव्रतों की साधना में सहायता मिल सके। भगवान महावीर की अनेकानेक देनों में से समतामूलक यह एक निरुपम देन है । महावीर को कैसे मनाएं ? भगवान महावीर के निर्वाण हुए ढाई हजार वर्ष पूरे होने वाले हैं। पर इतनी लम्बी काल-अवधि के पश्चात् भी उनके सिद्धांतों और उपदेशों की प्रासंगिकता में किंचित् भी न्यूनता नहीं आई है, बल्कि कहना चाहिए कि आज उनकी प्रासंगिकता अपेक्षाकृत ज्यादा हुई है। हिंसा और अर्थवाद से मानव-जाति ने जो त्रास भोगा है, उसके कारण आज अहिंसा और अपरिग्रह को व्यापक समर्थन और महत्व मिल रहा है। बौद्धिक जगत् अनेकांत के प्रति तेजी से आकर्षित हो रहा है। पर खेद का विषय यह है कि जैन लोग स्वयं महावीर के सिद्धांतों का मूल्य पूरा-पूरा नहीं आंक रहे हैं। उनका जीवन महावीर के आदर्शों के अनुरूप नहीं दिखाई पड़ रहा है। मेरी दृष्टि से महावीर की जय बोलने का उतना महत्व नहीं है, जितना उनके आदर्शों के अनुरूप जीवन को ढालने का है। जैनत्व की कसौटी नाम के पीछे 'जन' जोड़ना नहीं, बल्कि महावीर के आदर्शों के सांचे में अपनी सोच, व्यवहार एवं कर्म को ढालना है । अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत और समता-- महावीर के जिन चार सिद्धांतों और उपदेशों की चर्चा मैंने की, उनके जीवन्त प्रतीक बनकर ही महावीर के प्रति सच्ची श्रद्धा समर्पित की जा सकती है और यही उनके निर्वाण-दिवस-दीपमालिका को मनाने की सच्ची सार्थकता है। यही दीपावली का संदेश है। कानपुर ११ नवम्बर १९५८ दीपावली का संदेश १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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