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वह एकमात्र तत्व है, जो सभी उलझनों एवं विषमताओं को मिटाकर जीवन को शांति के विस्तीर्ण राजपथ पर अग्रसर होने की प्रबल शक्ति देता है।
उन्होंने परिग्रह को अनेक समस्याओं के मूल के रूप में प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा, अपरिग्रह के बिना अहिंसा फलित नहीं हो सकती । परिग्रह से बंधा व्यक्ति नाना प्रकार की हिंसा में प्रवृत्त होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की अपरिग्रह की दिशा में गति बढ़ती है, वैसे-वैसे उसकी अहिंसा भी पुष्ट होती चली जाती है। अनेकांत का मूल्य
भगवान महावीर ने अनेकान्तवाद का प्रतिपादन कर संकीर्णताजन्य पारस्परिक संघर्षों से परे रहने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने कहा, ऐकांतिक दृष्टिकोण के कारण व्यक्ति-व्यक्ति, समाज-समाज, राष्ट्र-राष्ट्र के बीच विवाद और संघर्ष की स्थिति बनती है । यदि आनेकान्तिक दृष्टिकोण को सामने रखकर व्यवहार किया जाए तो विरोधी-से-विरोधी बातों में भी सामंजस्य का सूत्र खोजा जा सकता है। संसार भर के सभी स्तर के विवाद इस सिद्धांत के माध्यम से समाहित किए जा सकते हैं। निश्चित ही यह भगवान महावीर की एक महान देन है। पर प्रश्न तो यह है कि महावीर का यह अनेकांत का सिद्धांत उनके अनुयायियों के जीवन में कहां तक उतरा है ? यदि यह सिद्धांत उनके चिंतन और व्यवहार में उतर जाता तो कोई कारण नहीं है कि उनके पारस्परिक विवाद नहीं सुलझते । यह स्थिति इसी बात की ओर संकेत करती है कि स्वयं जैन लोगों ने भी इस सिद्धांत का सही-सही मूल्यांकन नहीं किया है, इसके महत्व को नहीं समझा है। ऐसे में वे उसे विश्व में कैसे फैला सकते हैं। अपेक्षा है, जैन लोग भगवान महावीर के इस सिद्धांत के प्रति गंभीर बनें। गंभीर बनने से मेरा तात्पर्य आप समझते ही होंगे। वे इसे जीवन में जीएं । स्वयं जीकर ही वे इसे विश्वव्यापी बना सकते हैं। महावीर की अनुपम देन
___ भगवान महावीर ने समता-धर्म का प्रतिपादन और उपदेश दिया। उनके समग्र दर्शन और उपदेश का मौलिक आधार और सार समता ही है । उन्होंने पुरुष और नारी को एक दृष्टि से देखा । पुरुष को उच्च और नारी को हीन नहीं माना। यही कारण है कि उन्होंने पुरुष की तरह ही नारी को भी अध्यात्म-साधना में आगे बढ़ने का पूरा अधिकार दिया। अपने संघ में उन्होंने जहां चवदह हजार पुरुषों को दीक्षित किया, वहीं महिलाओं की संख्या छत्तीस हजार थी । साध्वियां भी साधुओं की तरह महावतों की साधना में रत रहती हुई जन-जन को अध्यात्म की ओर प्रेरित करने का महनीय कार्य
मानव-मन
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