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दीपावली का संदेश *
दीपावली का माहात्म्य
दीपावली का दिन भारतीय परंपरा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है । जैन धर्म की दृष्टि से तो आज का दिन एक ऐतिहासिक दिन है, यादगार दिन है | आज के दिन श्रमण संस्कृति के महान् उन्नायक, युगप्रवर्तक, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपनी जीवन-साधना को संपन्न कर मुक्ति का लाभ प्राप्त किया था। उनकी आत्म-साधना की चरम सम्पन्नता की वह स्वर्णिम बेला थी । दूसरे शब्दों में भारत की आध्यात्मिक संस्कृति के आलोक का वह एक पुण्य दिवस था ।
महावीर की साधना
भगवान महावीर का जीवन त्याग, संयम एवं चरित्र का जाज्वल्यमान प्रतीक था, जीवंत प्रतीक था । साधना के पथ पर आगे बढ़ते समय उन्हें नाना प्रकार के कष्टों को झेलना पड़ा, अनेक परीषहों को सहना पड़ा । पर साधना के प्रति उनका समर्पणभाव इतना गहरा था कि वे हर अनुकूलप्रतिकूल परिस्थिति में अविचल एवं अडोल रहते हुए गंतव्य की दिशा में बढ़ते रहे । क्रमशः बढ़ते रहे । आन व संकल्प के धनी मनस्वी पुरुषों को हजार प्रतिकूलताएं भी आगे बढ़ने से कब रोक पाती हैं। वे चट्टानों को चीर कर भी अपनी राह बना लेते हैं, आगे बढ़ जाते हैं ।
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अहिंसा और अपरिग्रह का महत्त्व
भगवान महावीर का समग्र जीवन हमारे लिए अत्यंत प्रेरक है । उन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जैसे सार्वभौम एवं परम जीवनोपयोगी तत्वों का संदेश देते हुए जन-जन का मार्ग-दर्शन किया । उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में बताया कि हिंसा जीवन की किसी भी समस्या का समुचित समाधान नहीं है । समुचित असमुचित की बात भी आगे की है । हिंसा से कोई भी समस्या सुलझती ही नहीं है । उनकी दृष्टि में अहिंसा ही * २४८४ वें महावीर निर्वाण दिवस के अवसर पर प्रदत्त प्रवचन
दीपावली का संदेश
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