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निंदा, ईर्ष्या आदि से उपरत बनती हुईं प्रमोद भावना का विकास करें । तभी वे बच्चों को सुसंस्कारी बनाने के अपने गुरुतर दायित्व को सम्यक् रूप से निभा सकेंगी ।
नैतिक जागरण में नारी की भूमिका
यह एक यथार्थ है कि समाज एवं राष्ट्र में जब भी कोई उल्लेखनीय कार्यं हुआ है, उसमें नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । आज राष्ट्र में नैतिक जागरण की महती आवश्यकता है, बल्कि सर्वाधिक आवश्यकता है । इस कार्य में महिलाओं को सलक्ष्य जुटना है । मेरा मानना है कि यदि वे दृढ़ संकल्प एवं सम्पूर्ण निष्ठा के साथ इस कार्य में जुट गईं तो राष्ट्र के नैतिक एवं चारित्रिक जागरण के कार्य को एक नई गति मिलेगी। उसकी सफलता की संभावनाएं बहुत बढ़ जाएंगी । समाज और राष्ट्र के अभ्युदय में यह उनका अत्यंत उल्लेखनीय योगदान होगा |
कानपुर
३० अक्टूबर १९५८
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महके अब मानव-मन
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