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नारी-जागृति का महत्व
नारी का विकास : समाज का विकास
नारी मानव-समाज का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। उसके विकास के बिना समाज का विकास अधूरा है। आप जानते हैं, बालक-बालिकाएं समाज एवं राष्ट्र के भावी कर्णधार होते हैं। समाज और राष्ट्र का उत्तरदायित्व उन्हीं के कंधों पर आता है । इस दृष्टि से उनका सही निर्माण होना अत्यंत आवश्यक है । परोक्ष रूप से वह समाज और राष्ट्र के भविष्य का निर्माण है। इन बालक-बालिकाओं का निर्माण माताओं के रूप में नारी के द्वारा होता है। वही उन्हें संस्कार प्रदान करती है। जैसे संस्कार वे माताओं से पाते हैं, उसी सांचे में उनका जीवन सहज रूप से ढल जाता है। इसलिए हम ऐसा मान सकते हैं कि महिला-समाज के अभ्युत्थान का एक विशेष फलित है - भावी पीढ़ी का सद्वृत्ति और सुसंस्क र की ओर अग्रसर होना । यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, अपितु बिलकुल वास्तविकता है । वस्तुतः सुसंस्कारी और जागृत नारी समाज के लिए एक वरदान है। सुसंस्कारों की जागरणा उसके स्वयं के जीवन को तो सुखी और शांत बनाती ही है, प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से घर-परिवार को भी स्वर्ग बना देती है। समाज और राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य का सुदृढ़ आधार भी निर्मित कर देती है। जरूरी है कुसंस्कारों को छोड़ना
मैं देख रहा हूं, आज बहनें बच्चों को सुसंस्कारी बनाने की अपनी जिम्मेवारी का सम्यक निर्वहन नहीं कर रही हैं। अन्यथा नई पीढ़ी में आज दिखाई देने वाला सुसंस्कारों का अभाव नहीं होता। और इस जिम्मेवारी का सम्यक् निर्वहन वे कर भी कैसे सकती हैं, जबकि उनका स्वयं का जीवन भी सुसंस्कारों के ढांचे में नहीं ढल रहा है। वे गलत संस्कारों में बही जा रही हैं । प्रदर्शन और फैशनपरस्ती उन पर हावी हो रही है। दूसरों की नुक्ताचीनी, निंदा, कलह, ईर्ष्या में वे अपनी शक्ति का अपव्यय कर रही हैं । अपेक्षा है, महिलाएं प्रदर्शन एवं फैशनपरस्ती के स्थान पर सादगी, सात्विकता, सहजता एवं शालीनता को जीवन में उतारें। नुक्ताचीनी
नारी-जागृति का महत्व
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