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________________ ७४ व्रत का मूल्य जीवन-शुद्धि को बीज ____ 'व्रत' भारतीय संस्कृति की आत्मा है । उसका घोष है-मानव अपने में परिव्याप्त बुराइयों को छोड़ व्रती बने। वे भविष्य में व्याप्त न हों, इसलिए वह स्वीकृत व्रतों में दृढ़ रहे । 'व्रत' त्याग का पर्याय है। जो प्राप्त भोगों को छोड़े, वह व्रती है। साथ ही अप्राप्त भोगों का परित्याग भी व्रत है। इससे भविष्य में यदि वे (भोग) उपलब्ध भी हो जाते हैं तो भी व्यक्ति उनकी ओर आकर्षित नहीं होता, उस ओर डिगता नहीं, उस ओर झुकता नहीं। व्रत उसे बचा लेते हैं। व्रत जीवन-शुद्धि के बीज हैं। एक बीज में हजारों-लाखों फलों को पैदा करने की क्षमता होती है। यदि बीज जल जाता है तो फिर उससे एक पत्ता भी नहीं निकल सकता। व्रतनिष्ठ भाईबहन व्रतरूपी बीजों को अपने में बोएं। जो अब तक अपने में व्रतानुरूप उर्वर भूमिका पैदा नहीं कर सके हैं, वे अपने हृदय को उर्वर बनायें । व्रत जीवन को विकारों से सुरक्षित रखने के लिए एक प्राचीर है। अणुव्रतियों से अपेक्षा जो अपने आपको जीत लेता है, वह संसार पर काबू पा लेता है। इसलिए महर्षियों ने बताया- अपने-आपसे जूझो, दूसरों से नहीं। व्रत आत्मविजय का मार्ग है। मुझे आशा है, अणुव्रती बहन-भाई अपने द्वारा लिये गये व्रतों को मजबूती के साथ निभायेंगे। वे उसमें श्लथ और कमजोर नहीं रहेंगे। साथ ही मैं यह भी चाहूंगा कि प्रत्येक अणुव्रती भाई और बहन अग्रिम वर्ष में कम-से-कम पांच अणुव्रती अवश्य बनाये। यह छोटा-सा सहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा, जिसकी कि वर्तमान परिस्थितियों में समाज और राष्ट्र को बहुत बड़ी अपेक्षा है। कानपुर २२ अक्टूबर १९५८ १४० महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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