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अणुव्रत की कार्यदिशा*
अणुव्रत आंदोलन का उद्देश्य
अणुव्रत साधना का पथ है । साधना के इस पथ को जब हमने व्यापक बनाना चाहा, तब उसने आंदोलन का रूप ले लिया । इस आंदोलन का मूलभूत उद्देश्य है— जन-जीवन संयमित बने, उसकी व्रत-चेतना जागे । अणुव्रत आंदोलन के घोष - 'संयमः खलु जीवनम्' - 'संयम ही जीवन है' के पीछे भी यही भावना छिपी है । प्रधानता की कसौटी
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भारतीय संस्कृति या मानव संस्कृति की यही विशेषता रही है कि वह जन-जन को संयममय जीवन जीना सिखाती है । मैं मानता हूं, अपने द्वारा अपने पर अनुशासन या संयम करने की विशेषता केवल मानव में ही है, अन्य किसी प्राणी में नहीं । हमारे यहां हमेशा संयमशील मनुष्य को ही प्रधानता दी गई है । वैसे अपने-आप में मनुष्य न प्रधान होता है और न अप्रधान । बस, संयम के जुड़ने पर प्रधान हो जाता है और संयम के अभाव में अप्रधान या गौण । प्रधानता कोई भौतिक या साकार वस्तु नहीं है । प्रधानता व्यक्ति को निज का 'स्व' है, उसको स्वयं का तत्त्व है। कौन व्यक्ति कितना आत्मतुष्ट है- यही प्रधानता की कसौटी है । आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि असंतोषी व्यक्ति चाहे चक्रवर्ती सम्राट् भी क्यों न हो, पर वह सुखी नहीं हो सकता । आज के जन-जीवन को देखने से एक बात बहुत स्पष्ट रूप से सामने आती है कि सभी दुःखी हैं । निर्धन तो दुःखी है ही, धनवान भी कम दुःखी नहीं है । और बहुत सही तो यह है कि जो जितना धनी है, वह उतना ही अधिक असन्तुष्ट है । सबसे अधिक सन्तुष्ट वही है, जिसके पास कुछ भी नहीं है, जो अकिंचन है ।
संयम निर्माणकारी है
मैं मानता हूं, आत्म-तोष का एकमात्र मार्ग आत्म-संयम है। दोनों * ९वें अणुव्रत अधिवेशन के अवसर पर प्रदत्त उद्घाटन भाषण ।
अणुव्रत की कार्यदिशा
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