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________________ भारतीय चिंतन व अवधारणा के अन्तर को अच्छे ढंग से समझ सकें। ___ मैं मानता हूं, भारत की आध्यात्मिकता आज भी कम नहीं हुई है, अलबत्ता मूच्छित अवश्य हुई है। इस मूर्छा के कारण ही भारतीय जन अपनी सांस्कृतिक परंपरा को भूलते जा रहे हैं । अणुव्रत आंदोलन इस मूर्छा और विस्मृति को दूर कर जन-जन में आध्यात्मिक चेतना एवं स्फुरणा पैदा करना चाहता है। शिक्षा क्यों ? आज मैं शिक्षा के प्रांगण में शिक्षार्थियों के बीच बैठा हूं। शिक्षा सचमुच जीवन के लिए एक वरदान है, बशर्ते उसके साथ सही लक्ष्य जुड़ा हो। क्या है शिक्षा का सही लक्ष्य ? भारतीय चिंतन में शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है-ज्ञान, संयम एवं आत्म-जागृति । पर दुर्भाग्य से आज इस उद्देश्य को भुलाया जा रहा है। आज तो वह डिग्री प्राप्त करने एवं आजीविकोपार्जन के योग्य बन जाने तक सीमित रह गई है। इस भूल का ही यह दुष्परिणाम है कि आज विद्यार्थियों में विनय, अनुशासन, नियमानुवर्तन जैसे अनिवार्य गुणों का अभाव होता जा रहा है। उनमें प्रतिदिन बढ़ती हुई उदंडता और उच्छृखलता समाज और राष्ट्र के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। समाज और राष्ट्र का नेतृत्व इस स्थिति से चिन्तित है। यद्यपि चिन्तित होना अस्वाभाविक नहीं है, पर चिंता समस्या का समाधान भी तो नहीं है । मेरी दृष्टि में उसका एकमात्र समाधान यही है-भूल का परिमार्जन । शिक्षा को अपने मूल उद्देश्य के साथ जोड़ा जाए। इस दृष्टि से मैं अध्यापक-वर्ग एवं विद्यार्थी-वर्ग दोनों से ही कहना चाहता हूं कि वे इस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित करें और एक नई यात्रा के लिए प्रस्थान करें। जीवन सुसंस्कारी और सात्विक बने उपस्थित छात्राओं से मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहता हूं। वे अभी से अपने जीवन को सुसंस्कारी और सात्विक बनाने की दृष्टि से जागरूक रहें। कल वे ही माताएं बनने वाली हैं। उनका जीवन इस सांचे में ढलेगा, तभी वे बच्चों को सुसंस्कार के सांचे में ढाल सकेंगी। इस अपेक्षा से उनका सुसंस्कारी बनना उनके स्वयं के लिए तो वरदायी है ही, नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अप्रत्यक्ष रूप से यह समाज और राष्ट्र की बहुत बड़ी सेवा है। कानपुर ९ अक्टूबर १९५८ महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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