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क्या है शिक्षा का लक्ष्य ?
ऋषिप्रधान देश है भारत
भारतवर्ष के पास यद्यपि अणुबम नहीं है, उद्जनबम भी नहीं है और न चन्द्रलोक में जाने की योजना ही उसके पास है, तथापि संसार भर के राष्ट्रों में उसका अपना एक विशिष्ट स्थान है. एक विशेष महत्व है। क्या आप इसका कारण जानते हैं ? मैं बताऊं इसका कारण । इसका कारण यह है कि अध्यात्म-संस्कृति के रूप में उसके पास एक अमर सम्पदा है। यह उसे विरासत के रूप में तपःपूत ऋषि-मुनियों द्वारा प्राप्त हुई है। इसी अपेक्षा से मैं अकसर भारतवर्ष को ऋषिप्रधान देश कहता हूं। नैतिकता का आधार
यह एक कटु सचाई है कि भारतवर्ष व्यावहारिक नैतिकता की दृष्टि से आज अन्यान्य राष्ट्रों की तुलना में बहुत दरिद्र है। इसका प्रत्येक भारतीय को आन्तरिक खेद होना चाहिए । पर इसका एक दूसरा पहलू भी है । उसे भी जानना चाहिए । हम जब गहराई से ध्यान देते हैं तो यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि अन्यान्य देशों की नैतिकता का आधार राष्ट्रीयता है। वहां के नागरिक नैतिकता का पालन इसलिए करते हैं कि संसार में उनके राष्ट्र का महत्व बना रहे । वे नैतिकता का पालन इसलिए करते हैं कि राष्ट्र आर्थिक एवं व्यावसायिक दृष्टि से समृद्ध हो, राष्ट्र के नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। यदि अनीति से भी इन उद्देश्यों की पूर्ति होती हो तो वे उसे अपनाने में संभवतः संकोच नहीं करेंगे। पर नैतिकता के संदर्भ में भारतीय दृष्टिकोण इससे सर्वथा भिन्न है। यहां नैतिकता का आधार अध्यात्म है, धर्म है, जो कि बाह्य उन्नति और विकास पर नहीं, आत्मोन्नति और आत्मविकास पर अवलम्बित है। हां, आत्मोन्नति एवं आत्म-विकास की भूमिका पर विकसित होनेवाली नैतिकता से राष्ट्रीय हित और विकास के उद्देश्य की प्राप्ति भी हो सकती है, पर वह उसका आधार नहीं है। आधार अध्यात्म ही है, धर्म ही है । मैं इस बात की पुनरावृत्ति इसलिए कर रहा हूं कि आप सब नैतिकता के सन्दर्भ में अन्यान्य देशों के चिन्तन और अवधारणा तथा
क्या है शिक्षा का लक्ष्य ?
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