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उस उत्तरदायित्व को झेलते हुए मुझे बावीस वर्ष हो गए हैं। यह मेरे जीवन का दूसरा विश्राम है । मुझे इस बात का अत्यंत तोष है कि इस अवधि में मैं आत्म-साधना, संघ-प्रभावना एवं जन-उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील रहा हूं। मेरा आगामी वर्ष आत्माराधाना, संघ-विकास एवं जन-जागरण की दृष्टियों से और अधिक कारगर बने, इसी आशंसा के साथ मैं अपने प्रति मंगलकामना करता हूं।
कानपुर २१ सितम्बर १९५८
१३.
महके अब मानव मन
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