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आत्मालोचन का दिन
मेरे लिए आज का दिन आत्म-निरीक्षण और आत्मालोचन का दिन है। धर्मसंघ के आचार्य के जिस दायित्य पर आप मुझे देख रहे हैं, वह दायित्व बावीस वर्ष पूर्व पूज्य गुरुदेवश्री कालगणी ने मुझे सौंपा था। उस ससय मेरी अवस्था मात्र बावीस वर्ष की थी। वह मेरे जीवन का प्रथम विश्राम था । आप कल्पना करें, एक बावीस वर्ष का युवक लगभग पांच सौ साधु-साध्वियों एवं लाखों श्रावक-श्राविकाओं के विशाल धर्मसंघ का एकमात्र आचर्य बने, यह कैसी स्थिति है ! पर उस अवस्था में भी हमारे विनीत साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं ने संघ की शालीन एवं गौरवशाली परंपरा के अनुरूप मुझे बावीस वर्ष का नहीं, अपितु गुरुवर्य के साठ वर्ष संयुक्त कर बयासी वर्ष का समझा। जो सम्मान वे पूज्य गुरुदेव को देते थे, वही सम्मान उन्होंने मुझे भी दिया। जिस हार्दिक भावना से पूज्य गुरुदेव के अनुशासन का पालन करने थे, उसी हार्दिक भावना से मेरे अनुशासन को भी स्वीकार किया। आज तो ये बातें मात्र स्मृति का विषय रह गई हैं, पर जब कभी इनकी स्मृति हो आती है, तब मन गदगद हो जाता है।
आचार्य बनते ही मैंने संघ के साधु-साध्वियों के विद्याध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। उसका सुन्दर परिणाम सामने आया। अनेक विद्वान, लेखक, कवि व वक्ता तैयार हुए । साहित्य के क्षेत्र में गति प्रारंभ हुई। अध्यात्म-भावना के व्यापक फैलाव व मानव-जीवन को नैतिक एवं चारित्रिक दृष्टि से उन्नत देखने की भावना से अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात हुआ। नौ वर्षों से सतत उसका कार्य चालू है । मुझे इस बात को प्रसन्नता है कि जन-जन का इस ओर एक आकर्षण और झुकाव बना है। समाज के सभी वर्गों का व्यापक समर्थन इसे प्राप्त हो रहा है। हजारों-हजारों लोगों ने इसकी आचार-संहिता को भी स्वीकार किया है। उत्तरोत्तर यह क्रम चालू रहा तो मुझे आशा है, जन-जीवन में एक नया आलोक व्यापेगा ।
पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद, अनुग्रह एवं सत्प्रेरणा का सबल संबल लिए
* २३ वें आचार्य-पदारोहण दिवस के अवसर पर प्रदत्त प्रवचन
आत्मालोचन का दिन
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