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क्षमा मांगता हूं। आशा है, सभी उदारतापूर्वक मुझे क्षमा दे देंगे। इसी प्रकार बहुत-सारे लोगों के व्यवहार को लेकर मेरे मन में भी उच्चावच भावना आई है। आज के दिन पिछली सभी बातों को विसर्जित कर मैं बिल्कुल हल्का हो गया हूं और उन्हें अत्यंत सरल भाव से क्षमा देता हूं।
बन्धुओ ! आज मैं निःशल्य हो गया हूं। आप भी अत्यंत ऋजुभाव से खमतखामणा करें और निःशल्य बन जाएं। यही इस पर्व को मनाने की सबसे बड़ी सार्थकता है ।
कानपुर १९ सितम्बर १९५८
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महके अब मानव-मन
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