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________________ क्षमाभावना का व्यापक फैलाव हो खमतखामणा का माहात्म्य आज खमतखामणा का दिन है । खमतखामणा का अर्थ है-क्षमा देना और क्षमा लेना । क्षमा मैत्री-भावना को पनपाने का अनन्य साधन है। आज सर्वत्र अमैत्री का वातावरण देखने का मिलता है। उसी का तो यह दुष्परिणाम है कि व्यक्ति-व्यक्ति, जाति-जाति, राष्ट्र-राष्ट्र के बीच वैमनस्य और संघर्ष की स्थिति बन रही है। यदि इस स्थिति को समाप्त करना है तो क्षमाभावना को फैलाना होगा। जनव्यापी, समाजव्यापी, राष्ट्रव्यापी और विश्वव्यापी बनाना होगा। जैन संस्कृति में इसका बहुत ऊंचा स्थान है। कितना मार्मिक स्वरूप इसका है-व्यक्ति अपनी ज्ञात-अज्ञात त्रुटियों के लिय स्वयं क्षमा मांगे और दूसरों को उनकी भूलों के लिए अपनी ओर से क्षमा दे ! आत्म-ऋजुता के साथ-साथ आत्म-गौरव का कितना सुंदर सामंजस्य यहां है ! मुझे लगता है, इस तत्व का वास्तविक मूल्य लोग समझ नहीं रहे हैं। औरों की तो बात ही क्या, स्वयं जैन लोग भी इसकी सही कीमत नहीं आंक रहे हैं। अपेक्षा है, क्या जैन और क्या अजैन, सभी इसका पूरा-पूरा मूल्य आंके। मैं पूछना चाहता हूं, शांति किसे नहीं चाहिए ? जब हर व्यक्ति इस आकांक्षा से बंधा हुआ है तो उसे इस तत्व को अपनाना ही होगा, अन्यथा वह चाहकर भी शान्ति का जीवन नहीं जी सकता। निःशल्य बनने का पुण्य पर्व बन्धुओ ! एक धर्मसंघ का आचार्य होने के कारण समय-समय पर मुझे अपने अनुशासन की डोर को खींचना पड़ता है, कड़ाई भी करनी पड़ती है। उस समय किसीको अप्रिय भी लग सकता है । यद्यपि उस कड़ाई के पीछे मेरा एकान्त व्यक्तिहित एवं संघहित का चिंतन रहता है, पर जिस पर अनुशासन की काररवाई होती है, उसको यह बात उस समय मुश्किल से ही समझ में आ सकती है । स्पष्ट गब्दों में कहूं तो उस समय मेरा व्यवहार कठोर ही लगता है। आज के इस महापर्व के पुण्य प्रसंग पर मैं अपने सभी प्रकार के अप्रिय एवं कठोर व्यवहार के लिए हृदय की सम्पूर्ण ऋजु भावना के साथ क्षमाभावना का व्यापक फैलाव हो १२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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