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को पुनः कायम करें। धर्म आकाश की तरह असीम
राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक से भी यह अपेक्षा है कि वह धर्म के आदर्शों को व्यवहारगत बनाने का प्रयास करे । पर इससे भी पहले यह जरूरी है कि वह धर्म के मौलिक स्वरूप को ठीक से समझे । आज तथाकथित धर्माधिकारियों ने उसे जाति, वर्ण, सम्प्रदाय आदि के ससीम घेरों में जकड़ दिया है, जबकि वह आकाश की तरह व्यापक है । असीम है । बड़ी-से-बड़ी कोई सीमा उसे अपने घेरे में बांधकर नहीं रख सकती । अणुव्रत आंदोलन धर्म को सभी प्रकार के संकीर्ण घेरों से निकालकर उसके मौलिक व्यापक स्वरूप को जन-जन के सामने प्रस्तुत करना चाहता है। किसी भी जाति, वर्ण, सम्प्रदाय का व्यक्ति इसके साथ जुड़ कर इसके प्रचार-प्रसार में संविभागिता निभा सकता है । धर्म के आदर्शों को जीवन में उतार सकता है। उनके अनुरूप अपने आचार और व्यवहार को ढाल सकता है । व्यापारी अपनी प्रतिष्ठा कायम करें
व्यापारी बड़ी संख्या में मेरे सामने उपस्थित हैं। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वे अपने आचरण की ओर ध्यान दें। आज उनकी प्रतिष्ठा बहुत गिर गई है। व्यक्ति बाजार में जाता है तो अपने को सुरक्षित नहीं समझता। वह बराबर सशंकित रहता है कि वह कहीं ठग न लिया जाए। यह व्यापारी-जीवन में व्याप्त दुर्नीति का स्पष्ट परिचायक है। यह अविश्वास और संशय तभी दूर हो सकता है, जब व्यापारियों के व्यवहार में नैतिकता, प्रामाणिकता एवं सचाई का एक सीमा तक निश्चित रूप में समावेश होगा। अणुव्रत आन्दोलन इस दिशा में उनका मार्ग-दर्शन करता है। इसके अन्तर्गत व्यापारी-वर्ग के लिए कुछ नियम हैं। उन नियमों को स्वीकार कर व्यापारी अपने व्यावसायिक व्यवहार को सही दिशा दे सकते हैं। आशा करता हूं, व्यापारी लोग इस पर गंभीरता से सोचेंगे।
कानपुर १४ सितम्बर १९५८
महके अब मानव-मन
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