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लोग न समझे । बहिर्मुखता से तात्पर्य है, पदार्थवादी दृष्टिकोण । भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण, भौतिक अभिसिद्धियों के प्रति लुब्धता, बाह्य सुखसुविधाओं की आकांक्षा। धर्म का चिंतन अन्तर्मुखी बनने-बनाने का चिन्तन है। दूसरे शब्दों में वह जीवन की बहिर्मुखता से अन्तर्मुखता की ओर मोड़ने की प्रक्रिया है। यदि व्यक्ति का चिंतन धर्म-प्रधान बन जाए तो वह महज रूप से बहिर्मुखता से छूटकर अन्तर्मुखता की राह पर बढ़ सकता है। और अन्तर्मुखता की राह पर पदन्यास करने वाले के लिए न केवल सत्य की साधना, अपितु कोई भी कठिन-से-कठिन दिखनेवाली साधना सहज बन जाती
कानपुर १३ सितम्बर १९५८
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महके अब मानव-मन
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