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अन्तर्मुखी बनें
शक्ति का दुरुपयोग
__ मानव एक छोटे से शरीरवाला प्राणी है। पर इसके उपरान्त वह हाथी, घोड़े, ऊंट, सिंह, बाघ जैसे विशालकाय एवं दुर्दान्त प्राणियों को वश में कर लेता है। इसका रहस्य क्या है ? इसका रहस्य है-उसकी एक विशेषता, जो और-और प्राणियों में प्राप्त नहीं है। उसमें अजब-गजब की बुद्धि है, विलक्षण मेधा है । उसके सहारे वह बड़ा-से-बड़ा कार्य कर सकता है। दुष्कर-से-दुष्कर कार्य कर सकता है। यहां तक कि असंभव दिखने वाले कार्य को भी संभव बना सकता है । पर उस बुद्धि की अच्छाई या बुराई उसके उपयोग पर निर्भर है। लेकिन इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात भी नहीं है। अच्छी-से-अच्छी चीज का भी दुरुपयोग हो सकता है । आज हम देखते हैं कि अनैतिक एवं स्वार्थमय कार्यों में जहां मानव अपनी इस शक्ति का उत्साह के साथ उपयोग कर रहा है, खुलकर उपयोग कर रहा है, वहीं सत्याचरण में उसकी यह बुद्धि कुंठित-सी हुई दिखाई देती है। सत्य भगवान है
सत्य जीवन का परम आदर्श है । आगम तो यहां तक कहते हैं कि सत्य भगवान है । पर कैसी विडम्बना है कि इस सत्य का आचरण करता हुआ भी आदमी भयभीत बन रहा है । आप पूछेगे, इसका कारण क्या है ? इसका कारण यह है कि आज के मानव का जीवन बहिर्मुखता से बुरी तरह ग्रस्त है । अन्यथा सत्याचरण में भय कैसा ? स्वोन्मुख या अन्तर्मुख व्यक्ति के लिए सत्य की साधना कठिन नहीं, सहज है। वह उसे अपना आत्मधर्म मान आचरण करता है । वेद में कहा गया है-'सुगमताऋतस्यपन्थाः ।' इसका अर्थ है--सत्य का मार्ग सुगम है, सरल और सहज है । यदि आज का मानव बहिर्मुखता से मुक्त होकर अन्तर्मुख बन जाए तो वह इस सचाई का स्वयं अनुभव कर सकता है। धर्म है अन्तर्मुखता की यात्रा
बहिर्मुखता का अर्थ आप समझते ही होंगे। यह भी संभव है कि कुछ
अन्तर्मुखी बनें
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