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________________ व्यापारी नैतिक और प्रामाणिक बनें सब रोगी हैं यह कितने दुःख और ग्लानि का विषय है कि आज मानव चंद चांदी के टुकड़ों की नाकुछ कीमत पर अपनी अमूल्य मानवता को बेचते हुए भी नहीं सकुचाता । वह धर्म की दुहाई दे सकता है, पर इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं देता कि उसके जीवन में मानवीय आदर्श कहां तक चरितार्थ हो पाये हैं ? उसके व्यवहार और आचरण में धर्म के मौलिक तत्त्व कहां तक उतर पाये हैं ? समाज का वातावरण इतना दूषित हो चुका है कि उसमें सांस लेना भी दूभर हो रहा है। यों लोग एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं। व्यापारी राज्यकर्मचारियों को भ्रष्ट बताते हैं तो राज्यकर्मचारी व्यापारियों को । मिलमालिक मजदूरों को बुरा मानते हैं, तो मजदूर मिलमालिकों को। इस संदर्भ में मुझे ऐसा लगता है कि कुछ कमोबेश की स्थिति तो अवश्य हो सकती है, पर बुराइयों से कोई भी वर्ग सर्वथा बचा हुआ नहीं है । किसी भी वर्ग को गहराई से क्यों न देखा जाए, नैतिकता, अप्रामाणिकता; भ्रष्टाचार के भयंकर रोग से इस प्रकार ग्रस्त है कि वह जर्जर एवं जीर्ण हो रहा है। व्यापारी सोचें आज अन्य वर्गों की बात छोड़ता हूं। व्यापारी-वर्ग के लोग मेरे समक्ष बड़ी संख्या में उपस्थित हैं, इसलिए उनसे ही कुछ बातें कर रहा हूं। एक अच्छे व्यापारी का व्यवहार, नैतिकता, प्रामाणिकता एवं सचाई से परिपुष्ट होना चाहिए। ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करनेवाला, झूठा तोल-माप करनेवाला, बेमेल मिलावट करनेवाला, कालाबाजारी करनेवाला""अच्छा व्यापारी कदापि नहीं हो सकता। भले कहलाने के लिए वह कितना भी बड़ा व्यापारी क्यों न कहलाता हो । यह बहुत खलने वाली बात है कि आज राष्ट्र के व्यापारियों का नैतिकता, सचाई आदि की दृष्टि से जैसा स्तर होना चाहिए, वैसा नहीं है। ऐसा क्यों ? इसलिए कि लोग अपनी आकांक्षाओं एवं लालसाओं को बेहद बढ़ाए जा रहे हैं । अपने जीवन-स्तर को कुछ इस व्यापारी नैतिक और प्रामाणिक बनें १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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