________________
अर्थ के प्रति सम्यक् दृष्टिकोण का निर्माण हो
सभा में बड़ी संख्या में व्यापारी-वर्ग के लोग बैठे हैं। मैं मानता हूं, व्यापारी वर्ग समाज का एक बुद्धिसंपन्न वर्ग है। तत्व दृष्टि से बुद्धिमत्ता या चतुराई को बुरा नहीं कहा जा सकता। हां, जब वह कुटिलता, कपट और वंचना का रूप ले लेती है तो बुरी बन जाती है। मैं चाहूंगा, व्यापारी अपनी बुद्धिमता या चतुराई को ऐसा रूप देने का प्रयास कदापि न करें, बल्कि इससे सलक्ष्य बचें। कितना अच्छा हो, उनकी चतुराई सन्मार्ग पर चले। पर यह एक कटु सचाई है कि आज ऐसा देखने में नहीं आ रहा है । असीम अर्थ-लिप्सा इसके केन्द्र में काम कर रही है। वही उसे सन्मार्ग पर चलने से रोक रही है। यह भी निष्कारण नहीं है। आज अर्थ की समाज में अतिरिक्त प्रतिष्ठा हो गई है। लोगों की पुष्ट अवधारणा बन रही है कि समाज में उसी व्यक्ति की इज्जत और शोभा है, जो अर्थसंपन्न है । मैं मानना हूं, इस गलत अवधारणा/दृष्टिकोण ने समाज के नैतिक एवं चारित्रिक पतन में अहम भूमिका निभाई है । इस गलत/अवधारणा दृष्टिकोण को बदलना होगा। अर्थ के स्थान पर त्याग व संयम को सर्वोच्च प्रतिष्ठा देनी होगी। तभी समाज का वातावरण स्वस्थ बनेगा। आशा करता हूं, सभी लोग इस बिन्दु पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
कानपुर १० सितम्बर १९५८
१२०
महके अब मानव-मन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org