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________________ नैतिक पतन : कारण और निवारण नेतृवर्ग की जिम्मेवारी समाज एक बच्चे की तरह है। आप जानते हैं, बच्चा प्रारंभ में स्वयं नहीं चल पाता । माता-पिता उसे अंगुली पकड़कर चलना सिखाते हैं। समाज के नेता समाज के माता-पिता या अभिभावक के स्थान पर हैं। इस स्थिति में मुझे यह कहने में कोई कठिनाई नहीं कि आज नैतिक और चारित्रिक पतन हुआ है, उसके लिए नेता कम जिम्मेवार नहीं हैं, बल्कि सर्वाधिक जिम्मेवार हैं। एक समय था, जब वे त्याग और सादगी का जीवन जीते थे। वे इस भाषा में सोचते थे, जब देश के आम आदमी को भर पेट भोजन नहीं मिलता, तन ढांकने को पूरा वस्त्र प्राप्त नहीं होता, रहने के लिए मकान की समुचित व्यवस्था नहीं होती, तब उन्हें क्या अधिकार है कि वे सुख-सुविधा के नित नए साधन जुटाएं, सामग्री बढ़ाएं । पर कसा समम आया है कि आज इससे सर्वथा विपरीत स्थिति बन गई है। उन्हीं नेताओं में से अधिकांश आज सुखसविधाओं के अभ्यासी बन रहे हैं, विलासी बन रहे हैं। वे आलीशान बंगलों एवं बड़ी-बड़ी कोठियों में शाही शान के साथ रहने में गौरव की अनुभूति करते हैं । विदेशी वातानुकूलित कारों में घूमने में अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं । निःसंदेह समाज और राष्ट्र के लिए यह एक बड़ी शोचनीय बात है। और बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि केवल राजनैतिक नेताओं तक ही यह स्थिति सीमित नहीं है, अधिकांश साधु-संतों की भी ऐसी स्थिति बन रही है । यह कैसी विडम्बना है कि जो साधु-संत समाज के सर्वाधिक प्रभावी पथ-दर्शक थे, वे ही आज ऐशोआराम में फंस रहे हैं, सुख-सुविधाओं में डूब रहे हैं, आसक्त बन रहे हैं । मैं साधु-संतों सहित सभी राजनैतिक एवं सामाजिक नेताओ से कहना चाहूंगा कि वे अपने दायित्व को समझे। उसके प्रति जागरूक बनें। अपने जीवन को त्याग, संयम, श्रम एवं साधना के सांचे में ढालें। ऐसा करके ही वे समाज के पथ-दर्शन के अपने दायित्व को अच्छे ढंग से निभाने में सफल हो सकेंगे। यह सफलता न केवल उनकी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करवाएगी, अपितु समाज और राष्ट्र की चारित्रिक रुग्णता को मिटाकर उन्हें स्वस्थ बनाने में भी निर्णायक भूमिका निभाएगी। नैतिक पतन : कारण और निवारण ११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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