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________________ ६२ जीवन-निर्माण की दिशा का उद्घाटन सम्यक् आस्था का निर्माण हो आज के मानव को मैं देखता हूं तो मुझे ऐसा अनुभव होता है कि उसमें अश्रद्धा का भाव बहुत गहरा रहा है । उसका यह विश्वास डगमगा रहा है कि नैतिकता, ईमानदारी, सचाई और प्रामाणिकता से भी इस संसार में काम चल सकता है। मैं इसे मानव की सबसे बड़ी कमी, मानसिक हास और आन्तरिक पतन मानता हूं । इस स्थिति से उसे उबरना अत्यंत आवश्यक है । जब तक मानव इस मिथ्या विश्वास से छुटकारा नहीं पाएगा, तब तक वह अच्छाइयों की तरफ अग्रसर कैसे हो सकेगा । उसे इस सचाई को हृदयगम करना है कि नीतिनिष्ठा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता आदि ही वे तत्व हैं, जो जीवन को सुखी और शांत बनाते हैं । उसे मानव कहलाने का सही गौरव प्रदान करते हैं । इन तत्वों या सद्गुणों का सहारा पाकर ही जीवन-व्यवहार परिष्कृत और संतुलित बनता है । विद्यार्थी सत्संस्कार जगाएं मेरे सामने बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित हैं । मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वे इस बात को बहुत गंभीरता से समझें कि विद्यार्थी अवस्था जीवन-निर्माण का पहला सोपान है । प्रारंभ से ही उन्हें अपने जीवन को सम्यक् श्रद्धा से सुसंस्कारित करना है। दीखने में यह बात साधारण-सी लग सकती है, पर मैं मानता हूं कि जीवन-निर्माण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है । सत्संस्कार जागने के पश्चात् ही आत्म-बल के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है, जो कि जीवन की लम्बी यात्रा में व्यक्ति को शक्ति, स्फूर्ति और उत्साह प्रदान करता है । विद्यार्थी जीवन अनुशासित, संयमित, नियमित एवं सत्प्रवृत्त रहे, इस उद्देश्य से अणुव्रत आंदोलन में विद्यार्थियों के लिए पांच नियमों वाली एक आचार-संहिता बनाई गई है। पांच नियम ये हैं- • मैं परीक्षा में अवैधानिक तरीकों से उत्तीर्ण होने का प्रयास नहीं करूंगा । ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only महके अब मानव-मन www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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