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नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हो
आज विश्व की स्थिति अत्यंत विकट है। नैतिकका का भयंकर दुभिक्ष छाया है। बाजार में पूरी कीमत चुकाने पर भी ग्राहक को शुद्ध पदार्थ की प्राप्ति नहीं होती। राजकीय विभागों में रिश्वत लेना सामान्य-सी बात हो गई है। उसके बिना काम चल सके, यह कठिन लगता है। विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता व्याप्त है। वे तोड़-फोड़ एवं हिंसात्मक प्रवृत्तियों में जुटते तनिक भी नहीं हिचकिचाते। मिल-मालिक मजदूरों का शोषण करते हैं। मजदूर लोग काम कम करना चाहते हैं और पैसे अधिक लेना चाहते हैं। जब-तब हड़तालें होती रहती हैं । और तो क्या न्यायालयों में जिस प्रकार का न्याय मिल रहा है, उससे लोगों का न्याय-व्यवस्था से विश्वास उठ रहा है । कहा नहीं जा सकता कि भविष्य के गर्भ में कितना अंधेरा छुपा है। ऐसे हालात को देख देश के हितचिंतक लोग काफी चिन्तित एवं उद्वेलित हैं । पर मैं मानता हूं कि चिन्तित और उद्वेलित होना समस्या का समाधान नहीं है। समाधान एक ही है--- जन-जन के विचार और व्यवहार में नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हो। अणुव्रत आन्दोलन इसी उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहा है। विद्यार्थी राष्ट्र की बुनियाद हैं
नैतिकता एवं चरित्र-विकास की दृष्टि से यों तो समाज के सभी वर्गों में अभियान चलाया जाना आवश्यक है और अणव्रत-आंदोलन ने चला भी रखा है, पर विद्यार्थी-वर्ग में इसकी सर्वाधिक अपेक्षा है । क्यों ? इसलिए कि विद्यार्थीवर्ग समाज व राष्ट्र की बुनियाद है । छात्र-छात्राओं का चारित्रिक एवं नैतिक विकास उनके स्वयं के जीवन को तो प्रभावित करेगा ही करेगा. समाज और राष्ट्र के अभ्युदय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इस दृष्टि से कार्यकर्ताओं को तो ध्यान देना ही है, अध्यापकों एवं विद्यार्थियों को भी सजग बनना आवश्यक है। मेरे सामने बहुत-सारे अध्यापक उपस्थित हैं। मैं उनसे भी कहना चाहता हूं कि राष्ट्र के भावी कर्णधारों के जीवन को नैतिकता एवं सच्चरित्र के सांचे में ढालने में वे अपनी शक्ति का पूरा-पूरा नियोजन करें।
महके अब मानव-मन
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