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शिष्टाचार या भ्रष्टाचार !
____ मद्यपान प्रमाद को बढ़ाता है, इस अपेक्षा से यह अनेक बुराइयों की जड़ है । यह जीवन को जर्जरित और निःसत्व बनाने वाला हैं । शराब के दुष्प्रभाव से कितने-कितने लोगों का जीवन बर्बाद होता रहा है, कैसा-कैसा नुकसान हुआ है, यह किसी से छुपा नहीं है। आज भी इससे होने वाले दुष्परिणाम आए दिन हमारे सामने आते रहते हैं . उन बहिनों से पूछिए कि वे कितनी दु:खी हैं, उनकी कैसी दुर्दशा है, जिनके पति शराबी हैं । अतः शराब से बचने का अर्थ है-अपने को पतन से बचाना, परिवार को दुःखी एवं अशांत होने से बचाना, दुर्दशा से बचाना। मैं चाहता हूं, प्रत्येक व्यक्ति स्वयं हृदय-परिवर्तन की भूमिका पर इससे बचे, इसका परित्याग करे और दूसरों को भी इस ओर प्रेरित करे। यह कितने आश्चर्य की बात है कि आज के तथाकथित सभ्य लोग शराब पीने को सभ्यता एवं शिष्टाचार की कोटि में समाविष्ट करते हैं। मुझे उनकी बुद्धि और चिंतन पर तरस आती है । हमें नहीं चाहिए, ऐसी सभ्यता और ऐसा शिष्टाचार, जो मानव को बुराइयों के गर्त में ढकेले। इसे तो जितना जल्दी दफना दिया जाए, उतना ही समाज और राष्ट्र का हित है।
अणुव्रत आंदोलन मानव के सुप्त सत्संस्कारों को जगाकर उसे मद्यपान जैसे सभी दुर्व्यसनों एवं कुसंस्कारों से मुक्त करना चाहता है। अपेक्षा है, अणुव्रत भावना का अधिक-से-अधिक प्रसार हो।
कानपुर २४ अगस्त १९५८
शराब अनेक बुराइयों की जड़ है
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