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शराब अनेक बुराइयों की जड़ है
आज देश में अनेक बुराइयां फैल रही हैं । ये बुराइयां मानव-जीवन को काठ में लगी दीमक की तरह अन्दर-ही-अन्दर खोखला किए जा रही हैं । मैं मानता हूं, राष्ट्र का यह सबसे बड़ा पतन है। जब तक इस पतन को नहीं रोका जाता, लाख प्रयास करने के बावजूद भी विकास नहीं हो सकेगा । जब तक बुराइयों और दुर्व्यसनों का आयात बंद नहीं होगा, तब तक केवल निर्यात से लाभ कैसे हो सकेगा ।
धर्म का स्वरूप
धर्म जीवन की पवित्रता का एकमात्र साधन है । पर धर्म के स्वरूप के बारे में लोगों के मनों में भ्रांतियां बहुत हैं । हमारे मस्तिष्क में उसकी धारणा बहुत स्पष्ट होनी चाहिए । कुछ लोग उसे निवृत्तिमूलक मानते हैं । ठीक है, धर्म निवृत्तिमूलक है । पर मात्र निवृत्ति-मूलक ही नहीं है । निवृत्ति के साथ प्रवृत्ति का भी वहां महत्वपूर्ण स्थान है । बुराइयों से निवृत्ति है तो अच्छाइयों में प्रवृत्ति भी हो । दुर्गुणों-दुर्व्यसनों से निवृत्ति है तो सद्गुणोंसदाचार में प्रवृत्ति भी हो । अणुव्रत आंदोलन मानव को बुराइयों - दुर्व्यसनों से निवृत्त और सदाचार - सच्चरित्र में प्रवृत्त देखना चाहता है । अनैतिकता, अप्रामाणिकता के रूप में हो रहे पतन को रोक वह मानव को संयम, व्रत एवं सच्चरित्र के विकास पथ पर अग्रसर देखना चाहता है ।
मद्यपान का दुष्प्रभाव
आज मद्यपान एक व्यापक बुराई या दुर्व्यसन के रूप में हमारे सामने है । यह बुराई प्रमाद को पैदा करती है । प्रमाद एक अपेक्षा से संसार में सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि इसमें डूबकर ही व्यक्ति दुष्प्रवृत्त बनता है, नानाविध पापकर्म करता है । अप्रमाद की स्थिति में पाप नहीं किया जा सकता । भगवान सव्वतो अपमत्तस्स नत्थि भयं' अप्रमादी को कोई भय नहीं ।
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महावीर ने कहा है- 'सव्वतो पमत्तस्स भयं - प्रमादी प्राणी को सब ओर से भय है,
इससे हम प्रमाद से होने वाले नुकसान का अनुमान लगा सकते हैं ।
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महके अब मानव-मन
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