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________________ पीढ़ी का सही निर्माण नहीं हो रहा है । इसका कारण यह है कि शिक्षा लक्ष्यशून्य -सी बन रही है । विद्यार्थी इस बात पर गंभीरतापूर्वक चिंतन तक नहीं करते कि जो ज्ञानार्जन वे कर रहे हैं, उसका वास्तविक उद्देश्य क्या है ? उन्होंने आजीविका - उपार्जन तक उद्देश्य को सीमित कर दिया है, जबकि यह तो बहुत छोटी बात है, बहुत गौण बात है । शिक्षा का उद्देश्य बहुत ऊंचा है । वह तो जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए है। मैं मानता हूं, इस भूल का ही यह परिणाम है कि वे आगे-पीछे की सोचे-समझे बिना ही ध्वंस, तोड़-फोड़ जैसी हिंसात्मक प्रवृत्तियों में झट कूद पड़ते हैं । अनुशासनहीनता उनके जीवन का हिस्सा बन गई है । इस मनोवृत्ति के कारण शिक्षा जगत् में सर्वत्र निराशा का वातावरण निर्मित हो रहा है । मैं नहीं समझता, विद्यार्थी इस तथ्य को क्यों भूल जाते हैं कि उनका जीवन योगी का जीवन है, साधना का जीवन है । वे जीवन-निर्माण की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बेला से होकर गुजर रहे हैं। इन बातों के प्रति लापरवाह एवं अजागरूक होकर क्या वे स्वयं को धोखा नहीं दे रहे हैं । सबसे बड़ा संकट मैं मानता हूं, आज राष्ट्र के समक्ष सबसे बड़ा संकट राष्ट्रीय चरित्र का है । एक विद्यार्थी वर्ग में ही नहीं, अपितु समाज के सभी वर्गों में चारित्रिक दृष्टि से उल्लेखनीय गिरावट आई है । यदि राष्ट्र को अपनी खोई प्रतिष्ठा और गौरव को पुनः प्राप्त करना है तो उसे इस संकट से उबरना होगा। हर हालत में इसे समाप्त कर चारित्रिक दृष्टि से जागृत बनना होगा । अणुव्रत आंदोलन चारित्रिक जागृति का अभियान है । इस अभियान से आप परिचित ही होंगे । यह मानव की संकल्प - चेतना को जगाना चाहता है । इसलिए इसके अन्तर्गत अहिंसा, सत्य आदि शाश्वत आदर्शों पर आधारित छोटी-छोटी प्रतिज्ञाएं स्वीकार कराई जाती हैं । हृदयपरिवर्तन के साथ की गई प्रतिज्ञा शक्ति को जगाने में बहुत योगभूत बनती है । आप देखें, राष्ट्र के विधानानुसार मंत्री, सांसद, विधायक आदि अन्याय, अनुचित कार्य आदि न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होते हैं । यह अलग बात है कि स्वीकृत प्रतिज्ञा के प्रति गंभीर कितने लोग रहते हैं । इस सन्दर्भ में एक बात का ध्यान रखा जाना अपेक्षित है । प्रतिज्ञा के साथ आत्म-स्वीकरण और दृढ़ता का भाव होना नितांत आवश्यक है। कोरी मौखिक प्रतिज्ञाउच्चारण से कुछ बनने का नहीं । मेरा दृढ़ विश्वास है, यदि व्यक्ति-व्यक्ति आत्म-स्वीकरण के स्तर पर सच्चरित्र-निर्माणकारी प्रतिज्ञाएं ले और उनका यथावत् पालन करे तो समाज का समूचा रूप ही बदल जाए । लोग धरती पर स्वर्ग के अवतरण की कल्पना करते हैं। पर मैं नहीं समझता, महके अब मानव-मन ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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