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करता हुआ भी नहीं हिचकिचाता। इस सन्दर्भ में मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि संभव है, गारंटी का न होना व्यक्ति को इस बुराई की ओर प्रवृत्त करने में कुछ कारण बने, पर यह मूलभूत और वास्तविक कारण नहीं है । मूलभूत और वास्तविक कारण है-व्यक्ति का अतुष्टि-दोष । मानव असीम भोगोपकरणों का संग्रह कर तुष्टि चाहता है। पर वे कैसे मिलें। कभी भी संभव नहीं है । फलतः वह सन्मार्ग से हटता है। इस अतुष्टि का कारण मन और इन्द्रियों की वशवर्तिता, अमितेन्द्रियता और मोहमूढ़ता है । इस दोष या भूल का छेदन किया जाना नितांत अपेक्षित है। इसके अभाव मे स्तेय और उसके संरक्षण में पलने-पुषने वाली विभिन्न बुराइयां मिट नहीं सकतीं ।
कानपुर १७ अगस्त १९५८
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महके अब मानव-मन
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