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उपद्रवों की मानो बाढ़ सी आ रही है । क्या ये राष्ट्र के विकास के लक्षण हैं ? नहीं हैं । स्थान-स्थान पर बनने वाले बड़े-बड़े बांध, पुल और सड़कों में भी मैं वास्तविक विकास नहीं देखता । मेरी दृष्टि में राष्ट्र का सच्चा विकास तो राष्ट्र के नागरिकों के जीवन में चरित्र, नैतिकता, सदाचार, सचाई और ईमानदारी के फलने-फूलने में है । इसलिए मैं राष्ट्र के नागरिकों से कहना चाहूंगा कि वे आज के दिन सच्चरित्र, नैतिकता, सचाई के पथ पर अग्रसर होने के लिए कृतसंकल्प हों । मेरी दृढ़ मान्यता है कि जब तक चरित्र, नैतिकता, सचाई आदि जीवननिर्माणकारी तत्वों के क्षेत्र में विकास नहीं होगा, तब तक राष्ट्र की कोई भी अच्छी से अच्छी योजना, महत्वाकांक्षी-से-महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी सफल नहीं हो सकता, वांछित परिणाम नहीं ला सकता । कौन नहीं जनता कि स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्र के लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान किया, सुख-सुविधाएं छोड़ीं, स्वार्थों को लात मारी । पर आज क्या देख रहे हैं कि सर्वत्र स्वार्थवृत्ति का बोलबाला है । उसके परिणामस्वरूप धोखा, विश्वासघात, छल, प्रपंच, झूठ आदि बुराइयां फैल रही हैं । मैं इसे मानवता का घोर पतन मानता हूं । इस स्थिति से राष्ट्र को उबरना है, निश्चित रूप से उबरना है, सलक्ष्य उबरना है । अन्यथा यह पतन उसे ऐसी भयावह दुरवस्था में पहुंचा देगा, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है । प्रश्न होगा, इस स्थिति से उबरने की प्रक्रिया क्या है ? प्रक्रिया तो बहुत स्पष्ट है । कारण को मिटाने से कार्य स्वयं समाप्त हो जाता है । यह स्थिति, जैसा कि मैंने कहा, स्वार्थ- वृत्ति की दुष्परिणति है । इसलिए इस स्वार्थ- वृत्ति को नियंत्रित करना होगा, उस पर विजय प्राप्त करनी होगी । और यह तब होगा, जब आत्म-शक्ति को जागृत किया जाएगा । आज के राष्ट्रीय पर्व-दिन के अवसर पर मैं राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को आह्वान करता हूं कि वह इस यज्ञ में अपनी आहुति दे ।
कानपुर
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महके अब मानव-मन
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