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चरित्र-निर्माण ही सच्चा विकास है*
भारतीय संस्कृति का आदर्श
भारतवर्ष के राजनैतिक इतिहास में आज का दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन है । परतंत्रता के बंधनों के टूटने का यादगार दिन है। देश में आज सर्वत्र खुशियां मनाई जा रही हैं, जुलूस निकाले जा रहे हैं, सभाएं-सम्मेलन आयोजित हो रहे हैं । इन सबको रोकने की बात मैं नहीं कह रहा हूं और इसकी जरूरत भी क्या है। पर इस बात के लिए नागरिकों एवं नेताओं को सावधान आवश्य कर देना चाहता हूं कि हर स्थिति में वे सांस्कृतिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखें। हर्ष के अतिरेक में उन्हें विस्मृत न कर दें। उन्हें यह नहीं भूल जाना चाहिए कि यह भारतवर्ष का पर्व है, किसी पश्चिमी देश नहीं, जहां हर्ष के समारोह शराब से मनाए जाते हैं । भारतवर्ष की अपनी एक गौरवशाली संस्कृति है, एक महान् परंपरा है । यहां प्रत्येक शुभ दिन, मंगल प्रसंग को जीवन-शुद्धि और आत्म-जागृति की प्रेरणा के साथ जोड़कर मनाया जाता है। क्या खोया ? क्या पाया ?
मेरी दृष्टि में आज का दिन प्रत्येक भारतीय के लिए आत्मावलोकन का दिन है । उसे सूक्ष्मता से देखना है कि गत वर्ष में उसने क्या खोया ? क्या पाया ? मैं मानता हूं, यह आत्मावलोकन व्यक्ति के जीवन में नव-चेतना का संचार करता है। अतीत की भूलों को सुधारने का अवसर देता है । यह कहना अतिरंजन नहीं, अपितु एक कटु सत्य से परिचित कराना होगा कि राष्ट्र की जनता ने जितना पाया है, उसकी तुलना में खोया अधिक है। सच्चा विकास
हम राष्ट्र की स्थिति पर जरा नजर पसारें। आज लोगों में पारस्परिक विश्वास घट रहा है । मंत्री क्षीण हो रही है । कलह, संघर्ष और
*१२वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रदत्त प्रवचन चरित्र-निर्माण ही सच्चा विकास है
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