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आक्रोशभरी प्रतिक्रिया पैदा करते हैं, जबकि अदण्ड और अबल (हृदयपरिवर्तन) विश्वास, अभय और आत्मीयता को जन्म देते हैं। इस समाजव्यवस्था में अदण्ड और अबलवृत्ति या दूसरे शब्दों में अहिंसा की भावना का जितना अधिक फैलाव होगा, उतना ही अधिक एकत्व और एकरसता पनपेगी। हालांकि अणुव्रत समाज-व्यवस्था में विभिन्न वर्गों के अन्तर्गत अपनी-अपनी योग्यतानुसार कार्य-भेद होगा, पर जातिवाद पर आधारित उच्च-नीच, स्पृश्य-अस्पृश्य जैसे कृत्रिम भेद दूर हो जाएंगे।
अणुव्रत समाज-व्यवस्था के चार मुख्य घटक हैं -अनाक्रमण, अशोषण, स्वामित्व का सीमाकरण और मैत्री । यदि मानव इन चारों को स्वीकार कर स्वयं आगे बढ़ा तथा अपने परिवार, पास-पड़ोस और समाज के लोगों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया तो अणुव्रत की भावना एवं आदर्शों के अनुकूल समाज-व्यवस्था के अस्तित्व में आने की आशा-किरण फूटेगी।
कानपुर ५ अगस्त १९५८
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महके अब मानव-मन
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