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________________ मानव सबसे पहले मानव श्रेय पथ मानव इस बात को न भूले कि और कुछ भी होने से पूर्व वह एक मानव है । इसलिए किसी भी बिन्दु पर उसका चिंतन सबसे पहले मानवता के दृष्टिकोण से होना चाहिए । मानव के बाद दूसरे नम्बर में वह एक धार्मिक है । पर धार्मिक होने से यहां मेरा अभिप्राय जैन, बौद्ध, सनातनी, ईसाई, मुस्लिम या पारसी होने से नहीं है । ये सब तो तीसरे-चौथे नम्बर की बातें हैं। मेरा धार्मिक होने से अभिप्रेत है--सत्य, अहिंसा, मैत्री, अपरिग्रह आदि आत्म-शुद्धिमूलक तत्वों को जीवनगत बनानेवाला। जैन, बौद्ध, वैदिक; ईसाई आदि तो पंथ हैं, सम्प्रदाय हैं, परम्पराएं हैं। इन सम्प्रदायों में से प्रत्येक सम्प्रदाय अहिंसा, सत्य आदि तत्वों का संवाहक हो सकता है, प्रचारक और प्रसारक हो सकता है, पर इनमें से कोई भी एकमात्र धर्म होने का दंभ नहीं भर सकता। वस्तुतः अहिंसा, सत्य आदि तत्व इतने व्यापक हैं कि किसी के दंभ भरने से ये किसी संप्रदायविशेष की संकीर्ण सीमाओं में समाते नहीं । दूसरे शब्दों में ये सार्वजनीन और सार्वभौम हैं। इन पर किसी सम्प्रदायविशेष का एकाधिकार नहीं हो सकता। इसलिए किसी सम्प्रदायविशेष का आधार ले संघर्ष में उलझ पड़ना मानव के लिए कभी भी श्रेयस्कर नहीं हैं । आपेक्षा है, यह बात सिद्धान्त-रूप में लोगों के हृदय में अंकित हो। मैं मानता हूं, यही वह भावना है, जो मानव-जीवन को असंकीर्ण बना उसे श्रेयस् की दिशा देती है। जातिवाद अतात्विक है सम्प्रदाय की तरह ही जाति, वर्ण आदि की सीमाएं भी धर्म की आराधना में बाधक नहीं बन सकती । किसी भी जाति, वर्ण, वर्ग में जन्म लेने वाला व्यक्ति उन्मुक्त भाव से धर्म की पालना कर सकता है । जो लोग धर्माराधना के क्षेत्र में जातिविशेष पर प्रतिबंध की बात करते हैं, वे वास्तव में धर्म के मर्म को समझते ही नहीं ! धर्म तो सूरज की धूप और चांद की चांदनी की तरह है। उन पर कोई प्रतिबंध हो तो धर्म पर प्रतिबंध की बात मानव सबसे पहले मानव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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