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समझ में आ सकती हैं। अन्यथा ऐसी बात करना चितन के दारिद्रय को प्रगट करता है । वैसे जाति, वर्ण आदि तो सामाजिक व्यवस्थाएं हैं, जो क्षेत्र, काल की अपेक्षानुसार समय-समय पर निर्मित होती रहती हैं, टूटती रहती हैं । इनको शाश्वत मानना भयंकर भूल है । फिर यह भी समझने जैसी बात हैं कि ऊंचापन-नीचापन जाति, वर्ण, अदि से संबंधित है ही नहीं। उसका आधार तो कर्म है। वही व्यक्ति ऊंचा और महान् है, जिसका आचरण और व्यवहार ऊंचा है, भले वह किसी भी जाति या वर्ण में क्यों न जन्मा हो । उच्च माने जाने कुल और जाति में पैदा होकर भी यदि व्यक्ति आचरण से गिरा हुआ है तो वह ऊंचा या महान् कदापि नहीं हो सकता। भगवान महावीर ने जातिवाद और वर्णवाद को सर्वथा अतात्विक बताया है। उनका संदेश है-मानव-जाति एक है । अपेक्षा है, महावीर का यह संदेश जनव्यापी बने, विश्वव्यापी बने । तभी मानव-जाति सुख और शांति से जी सकेगी।
कानपुर १३ जुलाई १९५८
महके अब मानव-मन
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