SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत आंदोलन को प्रासंगिकता अर्थप्रधान मनोवृत्ति का दुष्परिणाम अणुव्रत आंदोलन की दार्शनिक पृष्ठभूमि और उसके स्वरूप के संदर्भ में आपने अभी सुना । आज जबकि सारे संसार में अर्थवाद प्रभावी बन रहा है, अणुबम एवं उद्जनबम जैसे भयावह शस्त्रास्त्रों के कारण विध्वंश का वातावरण बना हुआ है, आपमें से कोई भी व्यक्ति इस भाषा में सोच सकता है कि व्रतों की चर्चा कहां तक संगत और प्रासंगिक है ? संयम का चिंतन कहां तक उपयुक्त है ? यों तो हर व्यक्ति अपने स्वतंत्र विचार के लिए सावकाश है, इसलिए किसी पर अपना विचार थोपा नहीं जा सकता। पर मैं व्रतों की चर्चा की अप्रासंगिकता एवं अनुपयुक्तता से सहमत नहीं हूं, बल्कि मैं तो कहना चाहता हूं कि आज वह बहुत अधिक प्रासंगिक है, उपयुक्त से भी आगे अत्यन्त आवश्यक भी है। मैं बहुत स्पष्ट रूप से अनुभव कर रहा हूं कि अर्थप्रधान मनोवृत्ति ने आज मानव को उद्भ्रान्त बना दिया है। जो अर्थ जीवन का साधन मात्र है, वह साध्य के स्थान पर प्रतिष्ठित हो गया है। अर्थ की इस अस्थानीय प्रतिष्ठा ने अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा की हैं । भ्रष्टाचार, अनैतिकता आदि इसके ही दुष्परिणाम हैं। अर्थ के क्षेत्र में पारस्परिक स्पर्धा ने विज्ञान जैसे सृजनात्मक तत्व को भी विनाश के साधन के रूप में प्रस्तुत किया है । भोगवाद अपना मुंह खोले मानवता को निगलने के लिए आतुर है । इस स्थिति को हर हालत में नियंत्रित करने की अपेक्षा है। मैं मानता हूं, आज भारतवर्ष में जितनी भी कार्य-योजनाएं बन रही हैं, उनमें इस कार्य-योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए । प्रश्न होगा, इस स्थिति को नियंत्रित करने की प्रक्रिया क्या होगी? प्रक्रिया तो आप सबके सामने अब अस्पष्ट कहां है ? मानव संयम, आत्म-नियंत्रण और त्याग का सही-सही मूल्यांकन करे, इन्हें अपने जीवन में स्थान दे। इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं, जो मानव-जाति को इस आसन्न खतरे से उबार सके । अणुव्रत आंदोलन की प्रासंगिकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy