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मानव-समाज में नारी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । जागृत नारी जहां अपने जीवन को विकसित करती है, वहां समूचे परिवार पर भी उसकी सात्विकता की छाप पड़ती है । उसके आदर्श जीवन का ज्योति - पिंड चारों ओर अपने प्रकाश की रश्मियां बिखेरता है । अतः प्रत्येक महिला को चाहिए कि वह इस योग्यता का वरण करने का संकल्प संजोए । पर ऐसा मात्र चाहने से नहीं होगा । उसके लिए तीन बातों की साधना भी अनिवार्य रूप में अपेक्षित है । वे तीन बातें हैं— सम्यक् श्रद्धा या विश्वास, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र | श्रद्धा का मिथ्यात्व व्यक्ति को भटका देता है । वह सही दिशा में गति नहीं कर पाता । सम्यक् श्रद्धा व्यक्ति के लिए हर परिस्थिति में सत्य पर अडिग बने रहने की प्रबल प्रेरणा होती है । सम्यक् ज्ञान उसे सत्याचरण पर निरन्तर आगे-से-आगे बढ़ने के लिए शाक्ति देता है, मार्ग प्रशस्त करता है । सम्यक् चारित्र तो मानव जीवन का अन्तःसार ही है । उसके बिना तो जीवन निःसार है, भारभूत है । अहिंसा, मंत्री, भाईचारा, सहिष्णुता, समता, निर्लोभता, निर्गर्वता, प्रामाणिकता, सत्य, नीतिनिष्ठा आदि सद्गुण उसके ही विभिन्न फलित हैं। मैं चाहूंगा, प्रत्येक बहिन उपरोक्त तीनों बातों की आराधना करती हुई अहिंसा, मंत्री आदि सद्गुणों से अपने जीवन को अधिक-से-अधिक भावित करे। ये सद्गुण उसके जीवन में एक दिव्य चेतना का प्रादुर्भाव करेंगे । इसके परिणामस्वरूप उसका अपना अभ्युदय तो होगा ही होगा, बालकों तथा समग्र कौटुम्बिक जनों पर भी उसका सीधा असर होगा । यह एक प्रकट तथ्य है कि बालकों एवं पारिवारिक सदस्यों को सुसंस्कारित करने का जो कार्य अनेक प्रयत्नों से नहीं बनता, वह महिलाओं के पवित्र एवं सुसंस्कारित जीवन से अपने-आप हो जाता है ।
डालीगंज ( लखनऊ ) १९ जून १९५८
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जीवन - विकास का मार्ग
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महके अब मानव-मन
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