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कार्यकर्ताओं को जीवन-दिशा
कर्यकर्ताओं का जनता के साथ सीधा सम्पर्क होता है । अतः उनके जीवन का सीधा प्रभाव समाज पर पड़ता है । इस अपेक्षा से उन पर जनता को प्रशिक्षित करने का बहुत गुरुतर दायित्व है। पर आज जनता की स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि कार्यकर्ता अपने उत्तरदायित्व को निभाने के प्रति जागरूकता नहीं बरत रहे हैं। उनका जीवन सहज रूप से संयत होना चाहिए। पर यह बहुत स्पष्ट है कि आज वे संयताचरण से दूर हटते जा रहे हैं। वे केवल अधिकार चाहते हैं, पर उनका कुछ कर्तव्य भी है, इस ओर उनका ध्यान नहीं जाता। इसलिए मैं उनसे कहना चाहूंगा कि सबसे पहले वे अपनी इन कमियों से छुटकारा पाने के लिए कृतसंकल्प हों। मैं आपसे ही पूछता हूं, जो व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझता, समझता भी है तो उसे निभाने के प्रति जागरूकता नहीं बरतता, वह क्या कभी सफल हो सकता है ? जिस कार्यकर्ता का जीवन असंयत वृत्तियों से घिरा हो, वह क्या सुख और शांति की अनुभूति कर सकता है ? दूसरों के सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है ? जो कार्यकर्ता अपने कर्तव्य के प्रति उपेक्षा का भाव बरतता है, उसे अनदेखा करता है, वह क्या कोई उल्लेखनीय कार्य कर सकता है ? बहुत स्पष्ट है, इन सबका उत्तर नकारात्मक है । ऐसी स्थिति में मैं कार्यकर्ताओं को आह्वान करता हूं कि वे अपने जीवन और जीवन-शैली पर गंभीरता से ध्यान दें। जो अवांछनीय तत्व उनके साथ जुड़ गए हैं, उनको एक-एक कर विदा करें। असत्य, विश्वासघात, धोखा, उत्पीड़न जैसे जीवनघातक तत्वों से अपना संबंध तोड़ें। उनके स्थान पर सत्य, मैत्री, प्रामाणिकता, नीतिनिष्ठा जैसे सद्गुणों को संजोएं, जिससे कि जीवन प्रेरक
और आदर्श बने । जैसा कि मैंने प्रारंभ में ही कहा, जनता से सीधा संपर्क होने के कारण कार्यकर्ताओं का उस पर सीधा प्रभाव पड़ता है । इस स्थिति में यदि उनका जीवन प्रेरक और आदर्श होता है तो जानता को सहज रूप से सद्गुणों का प्रशिक्षण मिलता है। प्रेरणा मिलती है। आशा है, भारत सेवक समाज के कार्यकर्ता इन बातों पर अपना ध्यान केंद्रित कर एक मिसाल पेश करेंगे।
लखनऊ १९ जून १९५८
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