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पानी होने के आभास के कारण बेचारा हरिण हांपता-हांपता भी दूर-से-दूर दौड़ता जाता है और वह मृत्तिकामय मैदान पानी का आभास देता हुआ उसे उत्तरोत्तर आगे-से-आगे खींचता चला जाता है। पर वह कब तक दोड़ता रह सकता है ? आखिर दम तोड़ देता है। क्या आज के मनुष्य की भी यही दशा नहीं है ? यदि वह इस दशा से छूटना चाहता है तो उसे भौतिकवाद की मृग-मरीचिका की निःसारता को समझना होगा । आत्म-शोधन के मार्ग पर चरणन्यास करना होगा। इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है, जो व्यक्ति को सच्चे सुख और शांति की अनुभूति करा सके । मैं पूछना चाहता हूं, क्या ऐसा कोई व्यक्ति है, जो सुख और शांति की चाह नहीं रखता ? जब हर व्यक्ति इस चाह के साथ जुड़ा हुआ है, तो उसे इसकी उपलब्धि के सही मार्ग को अपनाना चाहिए । ध्यान रहे, सही मार्ग ही व्यक्ति को अभीप्सित मंजिल पर पहुंचा सकता है। मानव को मानव की प्रतिष्ठा दिलानेवाला कार्यक्रम
अणुव्रत आंदोलन आत्म-संयम की भूमिका पर व्यक्ति-व्यक्ति के लिए सुख और शांति का मार्ग प्रशस्त करने वाला कार्यक्रम है। आप यह कभी न भूलें कि सच्चे सुख और शांति का मार्ग आत्म-संयम के समतल मैदान से होकर गुजरता है । यह आंदोलन हृदय-परिवर्तन की कार्यशैली से मनुष्य को उसकी प्रतिष्ठा प्रदान करने का अभियान चला रहा है। इसका अभिप्रेत है कि मनुष्य की सुषुप्त आत्म-शक्तियां जागें और वह मानवता के राजमार्ग पर आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़े। अपेक्षा है, व्यक्ति-व्यक्ति इस आंदोलन की आत्मा से परिचित हो और इसके साथ हर स्तर पर जुड़े। वकील लोग बौद्धिक होते हैं, इसलिए वे इसके दार्शनिक पक्ष को स्वयं बहुत अच्छे ढंग से समझ सकते हैं और दूसरों को समझा भी सकते हैं। मैं चाहता हूं, आप वकील जन अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग इस रचनात्मक कार्य को आगे बढ़ाने में करें। इससे आप अपना हित तो साधेगे ही, समाज, राष्ट्र एवं पूरी मानवता की बहुत बड़ी सेवा भी कर सकेंगे।
वार एसोसियेशन, सीतापुर ६ जून १९५८ .
महके अब मानव-मन
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