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रहते मानव-मानव कहलाने के योग्य भी नहीं रहता । उस स्थिति में वह पशु से भी बदतर और हीन होता है।
अणुव्रत आंदोलन इस आंतरिक अंधेपन को मिटाकर जन-जन को नया आलोक प्रदान करता है, जिसको कि प्राप्त कर वह अपने जीवन को सही दिशा में गतिशील कर सकता हैं। यह आंदोलन हिंसा, असत्य, शोषण, अन्याय, विश्वासघात जैसी घिनौनी प्रवृत्तियों का परिहार कर मानव-मानव को नैतिक एवं मानवीय दृष्टि से उबुद्ध देखना चाहता है। मैं चाहता हूं, इस महाचिकित्सालय के चिकित्सक, अधिकारी एवं कार्यकर्ता सभी इस आंदोलन के आधार एवं स्वरूप को समझे और इस अभियान के साथ सक्रिय रूप में जुड़ें। यदि ऐसा होता है तो मैं दृढ़ विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह चिकित्सालय न केवल बाहरी नेत्र और दृष्टि देने वाला ही होगा, अपितु आंतरिक चक्षुओं के उद्घाटन का भी प्रमुख केन्द्र बन जाएगा।
सीतापुर ५ जन १९५८
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महके अब मानव-मन
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