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________________ राग और विराग का दर्शन १५१ बनकर । चढ़ा था अल्पज्ञान की अवस्था में, उतरा केवलज्ञानी होकर । जैसे भरत महलों को छोड़कर चल दिये वैसे ही इलाचीकुमार ने नटमण्डली को छोड़कर प्रस्थान कर दिया । विराग का चिराग जले यह सामाजिक जीवन का एक बहुत सुन्दर चित्र है । जब समाज में केवल राग ही राग बढ़ता है तब समस्याएं उग्र बनती हैं, विकृतियां पैदा होती हैं । राग के सामने विराग का चिराग नहीं जलेगा तो राग उच्छंखल बन जाएगा, खतरनाक बन जाएगा । राग के सामने विराग का होना जरूरी है और उस विराग का होना ही परमात्मा का होना है । परमात्मा का मतलब है- भीतराग होना, राग से विराग की दिशा में प्रस्थान कर देना । कहा गया- परमात्मातिनर्मल:- जीवन में निर्मलता का आना, वीतरागता का आना परमात्मा का होना है। परमात्मा होने के भी कई कारण हैं । इलाचीकुमार के जीवन में एक घटना घटी, वह रागी से विरागी बन गया । यह विवेक के द्वारा भी सम्भव है । प्रश्न पूछा गयाआत्मा परमात्मा कब बनता है ? आचार्य ने समाधान की भाषा में कहा उच्छसिए मणगेहे, नठे निस्सकरणवावारे । विप्पुरिए ससहावे, अप्पा परमप्पओ हवदि ।। जब मन का घर उजड़ जाएगा , इन्द्रियों के प्रयल समाप्त हो जाएंगे, आत्मा का अपना मौलिक स्वभाव प्रकट हो जाएगा तब आत्मा परमात्मा बन जाएगा । जरूरत है दिशा बदलने की आत्मा और परमात्मा में ज्यादा दूरी नहीं है । केवल दिशा बदलने की जरूरत है। दिशा बदले, दृष्टि बदले तो सारा जीवन बदल जाता है जिसकी दृष्टि बदल जाती है उसका अहंकार भी बोध के लिए होता है, राग भी गुरु-भक्ति के लिए होता है और विषाद भी कैवल्य के होता है अहंकारोऽपि बोधाय, रागोऽपि गुरुभक्तये । विषादः केवलायाऽभूत्, चित्रं चित्रं श्रीगौतमप्रभो ! ।। जब दृष्टि बदलती है, तब व्यक्ति के जीवन में व्रत, त्याग और विराग आता है। जब जीवन में व्रत और विराग आता है, तब व्यक्ति का परमात्मा की ओर प्रस्थान हो जाता है। राग : विराग यदि पूछा जाए-समाज का परम तत्त्व क्या है ? उत्तर होगा- राग । जब व्यक्ति समाज की सीमा का अतिक्रमण कर अपनी ओर मुड़ जाता है तब विराग परम तत्त्व बन जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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