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________________ १५२ समस्या को देखना सीखें समाजस्य परं तत्त्वं, राग इत्यभिधीयते । समाजं समतिक्रान्तः, विरागो व्यक्तिमाश्रितः ।। ___ इस सच्चाई की ओर ध्यान केन्द्रित होना जरूरी है । यदि विराग का आदर्श सामने नहीं रहा तो राग समाज में विकार का कारण बनेगा । इसीलिए रागी व्यक्तियों के सामने भी विराग का आदर्श जरूरी है। विरागेण विना रागाः विकारान वितनोत्यलम् । तेनादर्शो विरागःस्याद्, रागिणामपि देहिनाम् ।। आज का युग राग बहुल है। राग को उद्दीप्त करने वाले तत्त्व भी प्रचुर हैं । इस स्थिति में यदि राग को खुला अवकाश दे दिया गया तो समाज का जीवन नारकीय बन जाएगा, डकैती, बलात्कार, हत्या, अपराध आदि से समाज संत्रस्त बन जाएगा । आज के युग में विराग की चर्चा अधिक प्रासंगिक है । हम विराग की बात सुनें । विराग के प्रति श्रद्धा जागेगी तो राग की भभकती आग पर पानी का छिड़काव होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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