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________________ १५० समस्या को देखना सीखें शर्ते बड़ी कठोर थीं। पर राग क्या-क्या नहीं करता ! इलाचीकुमार ने सारी शर्ते स्वीकार कर ली । वह वैभवशाली घर को छोड़कर नट मण्डली में शामिल हो गया। उसने नटविद्या सीखी । वह कुशल नट बन गया । एक दिन ऐसा योग मिला— एक राजा के सामने नटमण्डली का प्रोग्राम था । इलाचीकुमार ने आश्चर्यकारी करतब दिखाए । राजा को छोड़कर सारे सभासद, सारी प्रजा मुग्ध हो गई । राा का मन नटन्या म उला गया । राजा ने सोचा- जब तक यह नट कलाकार जिन्दा है तब तक नटकन्या मेरे हाथ नहीं आ सकती अगर बांस पर खेलत-खेलते यह नट गिर कर मर जाए तो मैं इस कन्या को पा सकता हूं। विराग का क्षण जब राग उच्छंखल होता है तब समाज में अपराध कैसे बढ़ते हैं। यह इसका सजीव चित्र है । एक प्रहर बीता । नट बांस से नीचे उतरा । सबने प्रशंसा की, मगर राजा ने कहा—मुझे पसन्द नहीं आया । तुम पुनः करतब दिखाओ । इलाचीकुमार पुनः बांस पर चढ़ा। उसने पुनः रोमांचक करतब दिखाए । राजा ने उदासीनता से कहा- तुमने तो अच्छे करतब दिखाए मगर मुझे सन्तोष नहीं हुआ। नट ने सोचा- राजा की नीयत खराब है । यह मुझे मारना चाहता है । कन्या के आग्रह पर नट एक बार फिर बांस पर चढ़ा। उसने देखा सामने वाले घर में एक सुन्दर सी कन्या एक मुनि को भिक्षा दे रही है । वह कन्या नटकन्या से भी सुन्दर है पर साधु ने उसकी ओर देखा तक नहीं । वह विस्मय से भर गया। उसके मन में प्रश्न उभरा-- यह क्या ? राग के उफान पर विराग का एक छींटा पड़ गया। वह चिन्तन की गहराई में उतरामैं एक नटकन्या के पीछे पागल बना घूम रहा हूं | मैंने घर छोड़ा, परिवार छोड़ा । नटकर्म जैसा कर्म अपनाया | गांव-गांव घूमता हूं, नाटक दिखाता हूं । न खाने का समय और न कोई सुख-सुविधा । नटकन्या के लिए अपनी संभ्रांतता छोड़ चुका हूं। दूसरी ओर वह मुनि है, जिसने रूपसी कन्या पर दृष्टिपात भी नहीं किया । वह गहराई में डूबता चला गया । राग के उद्दाम प्रवाह पर एक अंकुश लग गया । विराग ने राग को क्षीण बना दिया । वह बांस से नीचे उतरा, सीधा सभा से बाहर जाने लगा। नटकन्या बोली- 'कहां जा रहे हो ?' इलाचीकुमार ने कहा अलविदा ! नटकन्या ने कातर स्वर में कहा- 'क्या हुआ ?' इलाचीकुमार ने कहा- 'जो होना था हो गया, जो पाना था पा लिया । अब कुछ भी पाने की आकांक्षा शेष नहीं है।' कहा जाता है— इलाचीकुमार ऊपर चढ़ा था रागी बनकर और नीचे उतरा वीतरागी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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